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________________ एस धम्मो सनंतनो देखा कि बचपन था, वह भी गया। जवानी थी, वह भी गयी। बुढ़ापा भी जाएगा। जीवन भी जाएगा; मौत भी आएगी। और जब जीवन ही चला गया, तो मौत भी जाएगी। घबड़ाओ मत। सब बह रहा है। यहां न जीवन रुकता है, न मौत रुकती है। ___इस प्रवाह को जो सहज भाव से स्वीकार कर लेता है, जो रत्तीभर भी इससे संघर्ष नहीं करता, जो कहता है : जो हो, मैं उससे राजी हूं; जैसा हो, उससे मैं राजी हूं। कभी धन हो, तो धन से राजी हूं। और कभी दरिद्रता आ जाए, तो दरिद्रता से राजी हूं। कभी महल मिल जाएं, तो महल में रह लूंगा। कभी महल खो जाएं, तो उनके लिए रोता नहीं रहूंगा; लौटकर पीछे देखंगा नहीं। जो होगा, जैसा होगा, उससे अन्यथा मेरे भीतर कोई कामना न करूंगा। फिर कैसा दुख! फिर दुख असंभव है। आज तुम एक स्त्री से मिले; प्रेम में पड़ गए; विवाह कर लिया। अब तुम सोचते होः यह स्त्री खो न जाए। एक दिन पहले यह तुम्हारी स्त्री नहीं थी। कहीं यह खो न जाए! कहीं यह प्रेम टूट न जाए! कहीं यह संबंध बिखर न जाए! जो बना है, बिखरेगा। बनती ही चीजें बिखरने को हैं। यहां कुछ भी शाश्वत नहीं है। यहां सिर्फ झूठी और मुर्दा चीजें शाश्वत होती हैं। कागज का फूल देर तक टिक सकता है। असली फूल देर तक नहीं टिकता। इसी डर से कि कहीं प्रेम खो न जाए, लोगों ने प्रेम करना बंद कर दिया और विवाह करना शुरू किया। विवाह कागज का फूल है। प्लास्टिक का फूल है। प्रेम गुलाब का फूल है; सुबह खिला, सांझ मुझ जाएगा। कुछ पक्का नहीं है। जो जीवंत है, वह जीवंत ही इसलिए है कि बह रहा है। बहने में जीवन है। जीवन में बहाव है। जो ठहरा हुआ है... । एक पत्थर पड़ा है गुलाब के फूल के पास; वह सुबह भी पड़ा था, सांझ भी पड़ा होगा। कल भी पड़ा होगा, परसों भी पड़ा होगा। सदियां बीत गयीं और सदियों तक पड़ा रहेगा। और यह गुलाब का फूल सुबह खिला और सांझ मुझ गया। यह सोचकर कि यह गुलाब का फूल मुझ जाएगा, तुमने पत्थर की पूजा करनी शुरू कर दी। आदमी खूब अदभुत है। पत्थर की मूर्तियों पर फूलों को चढ़ाता है! फूलों की मूर्तियों पर पत्थर को चढ़ाओ, तो समझ में आता है। ___ लेकिन पत्थर की मूर्ति में थिरता मालूम होती है, स्थिरता मालूम होती है। असली बुद्ध तो एक दिन थे; फिर एक दिन नहीं हो गए। लेकिन नकली बुद्ध-वह जो पत्थर की मूर्ति है-उसे तुम सदा पकड़े बैठे रह सकते हो। आदमी इस भय से कि कहीं दुख न झेलना पड़े, धीरे-धीरे जीवंत वस्तुओं से ही संबंध तोड़ लेता है। मुर्दा वस्तुओं से संबंध जोड़ लेता है। उससे भी दुख होगा, क्योंकि मुर्दा वस्तुओं से कहां सुख की संभावना! सुख का एक ही उपाय है-तरलता, तथाता। 306
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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