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जागो और जीओ
को सरकने में इतना समय लगे! कि तुमने पाप किया था पिछले जन्म में और अब तुम्हें फल मिलेगा! यह तुमने कोई भारतीय सरकार की व्यवस्था समझी है! कि फाइलें सरकती हैं एक टेबल से दूसरी टेबल। और सरकती ही रहती हैं और कभी कोई परिणाम नहीं होता।
तत्क्षण है फल। धर्म नगद है। यहां उधार कुछ भी नहीं है। दूसरा सूत्रः
चन्दं व विमलं सुद्धं विप्पसन्नमनाविलं। नन्दीभवपरिक्खीणं तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं ।।
'जो चंद्रमा की भांति विमल, शुद्ध, स्वच्छ और निर्मल है तथा जिसकी सभी जन्मों की तृष्णा नष्ट हो गयी है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं।'
हित्त्वा मानुसकं योगं दिब्बं योगं उपच्चगा। सब्बयोगविसंयुत्तं तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं ।।
'जो मानुषी बंधनों को छोड़ दिव्य बंधनों को भी छोड़ चुका है, जो सभी बंधनों से विमुक्त है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं।'
पुब्बेनिवासं यो वेदि सग्गापायञ्च पस्सति। अथो जातिखयं पत्तो अभिचवासितो मुनि। सब्बवोसितवोसानं तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं ।।
__ 'जो पूर्व-जन्म को जानता है, जिसने स्वर्ग और अगति को देख लिया है, जिसका पूर्व-जन्म क्षीण हो चुका है, जिसकी प्रज्ञा पूर्ण हो चुकी है, जिसने अपना सब कुछ पूरा कर लिया है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं।'
इन सूत्रों का आधार, इनकी पृष्ठभूमि, द्वितीय दृश्यः
राजगृह में चंदाभ नामक एक ब्राह्मण था। वह पूर्व-जन्म में भगवान कश्यप बुद्ध के चैत्य में चंदन लगाया करता था, जिसके पुण्य से उसकी नाभि से चंद्र-मंडल सदश आभा निकलती थी। कुछ पाखंडी ब्राह्मण उसे नगर-नगर लेकर घूमते थे और लोगों को लूटते थे। वे कहते थे: जो इसके शरीर को स्पर्श करता है, वह जो चाहता है, पाता है।
एक समय जब भगवान जेतवन में विहरते थे, तब उसे लिए हुए वे ब्राह्मण
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