________________
एस धम्मो सनंतनो
श्रावस्ती पहुंचे। संध्या समय था और सारा श्रावस्ती नगर भगवान के दर्शन और धर्मश्रवण के लिए जेतवन की ओर जा रहा था। उन ब्राह्मणों ने लोगों को रोककर चंदाभ का चमत्कार दिखाना चाहा। लेकिन कोई रुकना ही नहीं चाहता था । फिर वे ब्राह्मण भी शास्ता के अनुभाव को देखने के लिए चंदाभ को लेकर जेतवन गए।
भगवान के पास जाते ही चंदाभ की आभा लुप्त हो गयी। वह तो अति दुखित हुआ और चमत्कृत भी। वह समझा कि शास्ता आभा लुप्त करने का कोई मंत्र जानते हैं। अतः भगवान से बोला : हे गौतम! मुझे भी आभा को लुप्त करने का मंत्र दीजिए और उस मंत्र को काटने की विधि भी बताइए । मैं सदा-सदा के लिए आपका दास हो जाऊंगा ।
भगवान ने कहा: मैं प्रव्रजित होने पर ही मंत्र दे सकता हूं। चंदाभ भगवान की बात सुनकर प्रव्रजित हो, थोड़े ही समय में ध्यानस्थ हो, अर्हत्वं को पा लिया। वह तो भूल ही गया मंत्र की बात। महामंत्र मिले, तो कौन न भूल जाए? जब ब्राह्मण उसे लेने के लिए वापस आए, तो वह हंसा और बोला : तुम लोग जाओ। अब मैं नहीं जाने वाला हो गया हूं। मेरा तो आना-जाना सब मिट गया है।
ब्राह्मणों को तो बात समझ में ही न आयी कि यह क्या कह रहा है ! ब्राह्मणों को तो छोड़ दें, भिक्षुओं को भी यह बात समझ में न आयी कि यह क्या कह रहा है !
भिक्षुओं ने जाकर भगवान से कहा: भंते! यह चंदाभ भिक्षु अभी नया-नया आया है और अर्हत्व का दावा कर रहा है ! और कहता है, मैं आने-जाने से मुक्त हो गया हूं। और इस तरह निरर्थक, सरासर झूठ बोल रहा है। आप इसे चेताइए।
शास्ता ने कहाः भिक्षुओ ! मेरे पुत्र की तृष्णा क्षीण हो गयी है । और वह जो कह रहा है, वह पूर्णतः सत्य है । वह ब्राह्मणत्व को उपलब्ध हो गया है।
.
तब उन्होंने ये सूत्र कहे थे।
यह छोटी सी कहानी समझ लें।
यह चंदाभ नाम का ब्राह्मण किसी अतीत जन्म में भगवान कश्यप बुद्ध के चैत्य में चंदन लगाया करता था ।
कुछ और बड़ा कृत्य नहीं था पीछे। लेकिन बड़े भाव से चंदन लगाया होगा कश्यप बुद्ध के चैत्य में, उनकी मूर्ति पर । असली सवाल भाव का है। बड़ी श्रद्धा से लगाया होगा। तब से ही इसमें एक तरह की आभा आ गयी थी। जहां श्रद्धा है, वहां आभा है। जहां श्रद्धा है, वहां जादू है ।
उस पुण्य के कारण, वह जो कश्यप बुद्ध के मंदिर में चंदन लगाने का जो पुण्य था, वह जो आनंद से इसने चंदन लगाया था, वह जो आनंद से नाचा होगा, पूजा की होगी, प्रार्थना की होगी, वह इसके भीतर आभा बन गयी थी । ज्योतिर्मय हो कर इसके भीतर जग गयी थी ।
कुछ पाखंडी ब्राह्मण उसे साथ लेकर नगर-नगर घूमते थे। क्योंकि वह बड़ा
292