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एस धम्मो सनंतनो
रेवत ऐसा ब्राह्मण हो गया है।
'जिसे तृष्णा नहीं है, जो जानकर वीतसंदेह हो गया है, जिसने डूबकर अमृत पद निर्वाण को पा लिया है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं।'
ऐसा मेरा पुत्र रेवत ब्राह्मण हो गया है। "जानकर वीतसंदेह हो गया...।'
इस बात को समझना। लोग दो तरह से संदेह से बच सकते हैं। एक तो जबर्दस्ती किसी विश्वास को अपने ऊपर थोप लें और संदेह से बच जाएं। वह झूठा है संदेह से बचना। वह संदेह आज नहीं कल बदला लेगा; बुरी तरह बदला लेगा।
तुम दुनिया में इतने नास्तिक देखते हो, इतने नास्तिक नहीं हैं। दुनिया में नास्तिक बहुत ज्यादा हैं। क्योंकि जिन्हें तुम आस्तिक की तरह देखते हो, उनमें से शायद ही . कोई आस्तिक है। वे सब नास्तिक हैं। भीतर तो नास्तिकता है; ऊपर से आस्तिकता की सिर्फ धारणा है। मान्यता है। मानते हैं कि ईश्वर है; जाना नहीं है। बिना जाने कैसे मानोगे? बिना जाने मानना नपुंसक है। उसमें कोई प्राण नहीं है।
इसलिए बुद्ध कहते हैं, जानकर जो वीतसंदेह हो गया है, जिसने जानकर संदेह से मुक्ति पा ली, जिसने परमात्मा को पहचान लिया, सत्य को पहचान लिया। जो यह नहीं कहता है कि मानता हूं कि ईश्वर है। जो कहता है, मैं जानता हूं-ऐसा व्यक्ति ब्राह्मण है।
ब्रह्म को मानने से कोई ब्राह्मण नहीं होता। ब्रह्म को जानने से कोई ब्राह्मण होता है। ___ 'जिसने यहां पुण्य और पाप दोनों की आसक्ति को छोड़ दिया है, जो विगतशोक, निर्मल और शुद्ध है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं।'
और मेरा पुत्र रेवत ऐसा ही ब्राह्मण हो गया है। इस ब्राह्मण के कारण वहां स्वर्ग था। इस ब्राह्मण के कारण वहां ऋद्धि की वर्षा हो रही थी। इस ब्राह्मण की मौजूदगी ने उस जंगल को महल बना दिया था।
और तुम समझ लेना। अगर तुम्हारे भीतर आनंद नहीं है, तो तुम महलों में भी रहो, तो जंगल में रहोगे। और तुम्हारे भीतर आनंद है, तो तुम जहां रहो, वहीं महल है। वहीं महल खड़ा हो जाएगा। वहीं महल निर्मित हो जाएगा। तुम जहां रहो, जैसे रहो, वही महल है। __खयाल रखना, लोग कहते हैं कि जो आदमी पाप करेगा, उसे नर्क भेजा जाएगा। और जो पुण्य करेगा, उसे स्वर्ग भेजा जाएगा। यह गलत बात है। सच बात कुछ और है। जो पाप करता है, वह नर्क में जीता है। भेजा जाएगा-ऐसा नहीं-भविष्य में। वह नर्क में जीता है-अभी और यहीं। और जो पुण्य करता है, वह स्वर्ग में जीता है—अभी और यहीं। __ पाप और पुण्य प्रतिपल फल लाते हैं। कोई सरकारी काम थोड़े ही है कि फाइलों
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