SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 303
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो सोने की ईंटें लगाकर भी आसन बनाया, तो मिट्टी हो जाती है। असली सवाल प्रेम का है। बुद्ध प्रेम को देखते हैं। भगवान रेवत के पास एक माह रहे। कहानी कुछ नहीं कहती। कहानी बड़ी महत्वपूर्ण है। कहानी यह नहीं कहती कि भगवान ने रेवत को कुछ कहा कि रेवत ने भगवान से कुछ कहा। बस इतना ही कहती है कि भगवान रेवत के पास एक माह रहे। ___ नहीं; कुछ कहा नहीं होगा। कहने की अब कोई बात ही न थी। रेवत वहां पहुंच ही गया, जहां पहुंचाने के लिए भगवान कुछ कहते। और रेवत तो क्या कहे! जो चाह थी, वह बिना मांगे पूरी हो गयी। भगवान उसके द्वार पर आ गए। मेरी अपनी दृष्टि यही है कि वे बैठे होंगे चुपचाप पास-पास। कोई कुछ न बोला होगा। बोलने को कुछ बचा न था। दो अर्हत बोल भी क्या सकते हैं। दो ज्ञानियों के पास बोलने को कुछ नहीं होता। दो अज्ञानियों के पास बहुत होता है बोलने को। बोलने से ही काम नहीं चलता; सिर खोलकर मानेंगे। दो अज्ञानी एक-दूसरे की गरदन पकड़ लेते हैं। दो ज्ञानी मिलें, तो चुप हो जाते हैं। हां, एक अज्ञानी हो और एक ज्ञानी, तो कुछ बोलने को हो सकता है। बुद्ध सदा बोलते हैं; रोज बोलते हैं। लेकिन इस एक माह कुछ बोले, इसकी कोई खबर नहीं है। यह एक माह जैसे चुप्पी में बीता होगा। जिनको साथ ले गए होंगे, वे भी ऐसे लोग थे, जो अर्हत्व को पा गए हैं। रेवत भी अर्हत था। यह सन्नाटे में बीता होगा महीना। यह महीना बड़ा प्यारा रहा होगा। यह महीना इस पृथ्वी पर अनूठा रहा होगा। इतने बुद्धपुरुष एक साथ बैठे चुपचाप! खूब बरसा होगा अमृत वहां। खूब घनी बरसा हुई होगी। मूसलाधार बरसा होगा अमृत वहां। सारा वन आनंदित हुआ होगा। पशु-पक्षियों तक की आत्माएं मुक्त होने के लिए आतुर हो उठी होंगी। वृक्षों के प्राण सुगबुगाकर जग गए होंगे। ऐसी गहन चुप्पी रही होगी। फिर रेवत को साथ लेकर वे वापस लौटे। और जब भगवान तुम्हारे पास आएं, तो एक ही प्रयोजन होता है कि तुम्हें अपने पास ले आएं। और तो कोई प्रयोजन नहीं हो सकता। गुरु शिष्य के पास आता है, ताकि शिष्य को गुरु अपने पास ले आए। गुरु की किरण तुम्हें टटोलती आती है-खोजती। रेवत को साथ लेकर वापस लौटे। आते समय दो भिक्षुओं के उपाहन, तेल की फोंफी और जलपात्र पीछे छूट गए। सो वे मार्ग से लौटकर जब उन्हें लेने गए, तो जो उन्होंने देखा, उस पर उन्हें भरोसा नहीं आया। रास्ते बड़े ऊबड़-खाबड़ थे। इस बार भगवान का साथ न था। वे ही रास्ते, भगवान साथ हों, तो प्यारे हो 288
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy