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________________ जागो और जीओ पशुओं की छाती को कंपा देने वाली दहाड़ें भरी दोपहरी में सुनायी पड़ती थीं। लेकिन भिक्षुओं को इस सब का कोई पता ही न चला। जिन्हें भगवान का साथ है, उन्हें यह सब पता चलेगा ही नहीं। बुद्ध के साथ चलते थे। बुद्ध की छाया में चलते थे। बुद्ध की रोशनी में चलते थे। बुद्ध का एक वायुमंडल था, उसमें चलते थे। सुरक्षित थे। यह जंगल जैसे था ही नहीं। रास्ते ऊबड़-खाबड़ नहीं थे। नजर बुद्ध पर लगी हो, तो कहां रास्ता ऊबड़-खाबड़! रास्तों में कांटे पड़े थे। लेकिन नजर बुद्ध जैसे फूल पर लगी हो, तो किसको ये छोटे-मोटे कांटे दिखायी पड़ते हैं! जंगल में जंगली आवाजें गूंज रही होंगी जरूर, कोई जंगल के जानवर भिक्षुओं को देखकर चुप नहीं हो जाएंगे। लेकिन जिसका हृदय बुद्ध को सुनने में लगा हो, उनके पदचाप को सुनने में लगा हो; जो यहां एकाग्र-चित्त होकर डूबा हो, उसे सब खो जाता है। तुमने देखा न। तुम जब कभी एकाग्र-चित्त हो जाओ, तो आकाश में बादल गरजते रहें और तुम्हें सुनायी न पड़ेंगे। ट्रेन गुजरे, हवाई जहाज निकले-तुम्हें सुनायी न पड़ेगा। तुम जब चित्त से शांत होते हो, एक दिशा में अनस्यूत होते हो, तो और सारी दिशाएं अपने आप खो जाती हैं। बुद्ध के प्रेमी थे ये भिक्षु। बुद्ध थोड़े से चुने हुए व्यक्तियों को लेकर ही गए होंगे; सारिपुत्र आदि को। सारिपुत्र होगा; महाकाश्यप होगा; मोद्गल्यायन होगा; आनंद होगा। ऐसे चुने हुए लोगों को लेकर गए होंगे। थोड़े से लोगों को रेवत को दिखाने ले गए होंगे—कि देखो रेवत को। अकेला है। मुझे कभी मिला भी नहीं। दूर से ही श्रद्धा के फूल चढ़ाता रहा है। मुझे कभी देखा नहीं और पहुंच गया! रेवत ने भगवान को ध्यान में आते देख...। ___ जब बुद्धि शांत हो जाती है और विचारों का ऊहापोह मिट जाता है, तो ध्यान की आंख खुलती है। ध्यान की आंख के लिए कोई बाधा नहीं है। ध्यान की आंख सब देख पाती है। बुद्ध के आने को देख सुंदर आसन बनाया। प्रभु आते हैं। जिनके पास जाने की कितनी-कितनी तमन्नाएं थीं, और कितनी-कितनी अभीप्साएं थीं, और कितने-कितने सपने थे। जिनके पास जाने के लिए सात साल अथक मेहनत की थी कि पात्र हो जाऊं तो जाऊं। आज वे स्वयं आते हैं। उसका आह्लाद तुम समझो। उसकी प्रतीक्षा तुम समझो। उसका आनंद! आज स्वर्ग टूटने को है! वह तो भूल ही गया होगा कि मैं यह क्या कर रहा हूं। ये पत्थर, और ये ईंटें, और जंगल से कुछ भी उठाकर आसन बना रहा हूं! इसकी फिक्र ही न रही होगी। प्रेम ऐसा जादू है कि पत्थर को छुए, सोना हो जाए। और तुमने अगर बेमन से 287
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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