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________________ एस धम्मो सनंतनो __इसलिए तो कोई किसी की सलाह नहीं मानता। तुमने देखा, दुनिया में सबसे ज्यादा चीज जो दी जाती है, वह सलाह है। और सबसे कम जो चीज ली जाती है, वह भी सलाह है। कोई किसी की मानता नहीं। बाप की बेटा नहीं मानता। भाई की भाई नहीं मानता। मित्र की मित्र नहीं मानता। अध्यापक की शिष्य नहीं मानता। एक लिहाज से अच्छा है कि लोग किसी की मानते नहीं। अरे, गिरना है तो कम से कम अपने ही गड्ढे में गिरो। दूसरे की सलाह लेकर दूसरे के गड्ढे में क्यों गिरना! अपने गड्ढे में गिरोगे, तो शायद कुछ अनुभव भी होगा। अपनी तरफ से गिरोगे, अपने हाथ से गिरोगे, तो शायद निकलने की संभावना भी है। अवश, दूसरे की सलाह से गिरोगे, तो निकलने की संभावना भी न रह जाएगी। मैं तुमसे कहना चाहता हूं: अपने ही पैर से चलकर जो नर्क तक पहुंचा है, वह वापस भी लौट सकता है। जो दूसरों के कंधों पर चढ़कर पहुंच गया है, वह लंगड़ा है। वह वापस कैसे लौटेगा? उसका लौटना बहुत असंभव हो जाएगा। और नर्क तक ले जाने वाले लोग तो तुम्हें बहुत मिल जाएंगे। एक ढूंढो, हजार मिल जाएंगे। लेकिन नर्क से स्वर्ग तक लाने वाला तो बहुत मुश्किल है। नर्क में कहां पाओगे ऐसा आदमी जो तुम्हें स्वर्ग तक ले जाए? यहां से नर्क तक जाने के लिए तो सब गाड़ियां बिलकुल भरी हैं, लबालब भरी हैं। लेकिन नर्क से इस तरफ आने वाली गाड़ियां चलती कहां हैं ! उनको चलाने वाला नहीं है कोई। अच्छा ही है कि कोई किसी की सलाह नहीं मानता। ' रेवत भाग गया। एकांत में बैठ गया। चुप हो गया। बोलता ही न था। और जब तुम एकांत में रहोगे और चुप रहोगे, तो भीतर विचार कब तक चलेंगे? कब तक चलेंगे? उनका मौलिक आधार ही कट गया। जड़ ही कट गयी। तुमने पानी सींचना बंद कर दिया। वही-वही विचार कुछ दिन तक गूंजेंगे-गूंजेंगेगूंजेंगे; धीरे-धीरे तुम भी ऊब जाओगे, वे भी ऊब जाएंगे। रोज-रोज नया कुछ होता रहे, तो विचार में धारा बहती रहती है। प्राण पड़ते रहते हैं। अब अकेले में बैठ गए, न बोलना है, न चालना है। कब तक सिर में वही विचार घूमते रहेंगे? धीरे-धीरे मुर्दा हो जाएंगे। गिर जाएंगे। सूखे पत्तों की तरह झड़ जाएंगे। नए पत्ते तो अब आते नहीं। पुराने पत्ते एक बार झड़ गए, तो मन निर्विचार हो जाएगा। उस दशा का नाम ही ध्यान है। वहां उन्होंने सात वर्ष समग्रता से साधना की। और साधना हो ही तब सकती है, जब कोई समग्रता से करे। कुछ भी बचाया, तो चूक जाओगे। निन्यानबे डिग्री पर भी पानी भाप नहीं बनता। सौ डिग्री पर ही बनता है। और जब तुम भी सौ डिग्री उबलोगे, तो ही रूपांतरित होओगे। एक डिग्री भी बचाया, तो रूपांतरित नहीं हो पाओगे। 284
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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