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________________ जागो और जीओ थोड़ी-बहुत देर को भुलाया जा सकता है; बदला नहीं जा सकता। _ और सब भुलावे एक तरह के मादक द्रव्य हैं। एक प्रकार के नशे हैं। कैसे तुम भुलाते हो, इससे फर्क नहीं पड़ता। कोई शराब पीकर भुलाता है। कोई धन की दौड़ में पड़कर भुलाता है। कोई पद के लिए दीवाना होकर भुलाता है। कैसे तुम भुलाते हो, इससे फर्क नहीं पड़ता। लेकिन थोड़ी देर को भुला सकते हो। बस। और जब भी नशा उतरेगा, अचानक पाओगेः अकेले हो। संन्यासी वही है, जो जानता है कि मैं अकेला हूं और भुलाता नहीं अपने अकेलेपन को। भुलाना तो दूर, अपने अकेलेपन में रस लेता है। और प्रतीक्षा करता है कि कब मौका मिल जाए कि थोड़ी देर अपने अकेलेपन का स्वाद लूं। थोड़ी देर आंख बंद करके अपने में डूब जाऊं; अकेला रह जाऊं। वही मेरी नियति है। वही मेरा स्वभाव है। उसी स्वभाव से मुझे पहचान बनानी है। दूसरों से पहचान बनाने से कुछ भी न होगा; अपने से पहचान बनानी है। दूसरों को जानने से क्या होगा? अपने को ही न जाना और सबको जान लिया, इस जानने का कोई मूल्य नहीं है। मूल में तो अज्ञान रह गया। तो रेवत एकांत में बैठ गया। मौन रखने लगा। बोलना बंद कर दिया। बोलने को है क्या? जब तक जान न लो, तब तक बोलने को है क्या? जब तक जान न लो, तब तक बोलना खतरनाक भी है, क्योंकि तुम जो भी बोलोगे, वह गलत होगा। तुम जो भी लोगों से कहोगे, वह भटकाने वाला होगा। तुम भटके हो, और औरों को भटकाओगे! बोलना तो तभी सार्थक है, जब कुछ जाना हो; जब कुछ अनुभव हुआ हो। जब कोई बात तुम्हारे भीतर प्रखर होकर साफ हो गयी हो। जब तुम्हारे भीतर ज्योति जली हो और तुम्हारे पास अपनी आंखें हों, तब बोलना। तब तक तो अच्छा है, चुप ही रहना। तुम अपना कूड़ा-करकट दूसरे पर मत फेंकना। तुम्हीं दबे हो, औरों पर कृपा करो। मत किसी को दबाओ अपने कूड़े-करकट से। • लेकिन लोग बड़े उत्सुक होते हैं! लोग अकेले-अकेले में घबड़ाने लगते हैं। राह खोजने लगते हैं कि कोई मिल जाता। किसी से दो बात कर लेते। बात करने का मतलब : कुछ कचरा वह हमारी तरफ फेंकता, कुछ कचरा हम उसकी तरफ फेंकते। न हमें पता है, न उसे पता है। इसको लोग बातचीत कहते हैं! यह बातचीत महंगी है। क्योंकि दूसरा भी अपने अज्ञान को छिपाता है और अपनी बातों को इस तरह से कहता है, जैसे जानता हो। तुम भी अपने अज्ञान को छिपाते हो और अपनी बातों को इस तरह से कहते हो, जैसे तुमने जाना है। दोनों एक-दूसरे को धोखा दे रहे हो। और अगर दूसरे ने मान लिया तुम्हारी बात को, तो गड्ढे में गिरेगा। तुम खुद गड्ढे में गिरते रहे हो। तुम्हारी बात मानकर जो चलेगा, वह गड्ढे में गिरेगा। 283
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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