________________
एस धम्मो सनंतनो
भयानक जंगल नहीं। आदमी दिन में खो जाए, तो राह न मिले। भरी दुपहरी में ऐसा घना जंगल, कि सूरज की किरणें न पार कर सकें वृक्षों को । और भयंकर जानवरों से भरा हुआ! बचकर आ गए, यही कहो उपासिके ! पूछो मत। वह बात याद दिलाओ मत। और यह रेवत कैसे उस जगह में रहता था ! कांटों ही कांटों से भरा था वह खंडहर । इतना ही नहीं, सांप-बिच्छुओं से भी भरा था।
फिर विशाखा ने और भिक्षुओं से भी पूछा। उन्होंने कहा : आर्य रेवत का स्थान स्वर्ग जैसा सुंदर है, मानो ऋद्धि से बनाया गया हो। चमत्कार है, महल सुंदर हमने बहुत देखे हैं, मगर रेवत जिस महल में रह रहा था, ऐसा महल स्वर्ग के देवताओं को भी उपलब्ध नहीं होगा। इतनी शांति ! इतनी प्रगाढ़ शांति ! ऐसा सन्नाटा ! ऐसा अपूर्व संगीतमय वातावरण- नहीं, इस पृथ्वी पर दूसरा नहीं है।
इन विपरीत मंतव्यों से विशाखा स्वभावतः चकित हुई। फिर उसने भगवान से पूछा: भंते! आर्य रेवत के निवास स्थान के संबंध में पूछने पर आपके साथ गए हुए भिक्षुओं में कोई उसे नर्क जैसा और कोई उसे स्वर्ग जैसा बताते हैं। असली बात क्या है ?
भगवान हंसे और बोले : उपासिके ! जब तक वहां रेवत का वास था, वह स्वर्ग जैसा था। जहां रेवत जैसे ब्राह्मण विहरते हैं, वह स्वर्ग हो ही जाता है। लेकिन उनके हटते ही, वह नर्क जैसा हो गया। जैसे दीया हटा लिया जाए और अंधेरा हो जाए, ऐसे ही । मेरा पुत्र रेवत अर्हत हो गया है; ब्राह्मण हो गया है। उसने ब्रह्म को जान लिया है।
और तब उन्होंने ये गाथाएं कही थीं :
आसा यस्य न विज्जन्ति अस्मिं लोके परम्हि च । निरासयं विसंयुत्तं तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं ।।
'इस लोक और परलोक के विषय में जिसकी आशाएं नहीं रह गयी हैं, जो निराशय और असंग है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं।'
278
यस्सालया न विज्जन्ति अञ्ञाय अकथंकथी । अमतोगधं अनुप्पतं तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं । ।
-
'जिसे आलय – तृष्णा — नहीं है, जो जानकर वीतसंदेह हो गया है, और जिसने डूबकर अमृत पद निर्वाण को पा लिया है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं।'
यो 'ध पुञ्ञञ्च पापञ्च उभो संगं उपच्चगा।