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जागो और जीओ
बिना देखे जान लिया। क्योंकि भगवत्ता भीतर ही उमग आयी।
सो रेवत बड़ी मुश्किल में पड़ गया। पहले गया नहीं। तब सोच-सोच रोने लगा कि पहले गया नहीं; सोचता था कि पात्र हो जाऊं। और अब जाऊं क्या! अब जिसे देखने चला था, उसके दर्शन तो भीतर ही हो गए। जिस गुरु को बाहर खोजने चला था, वह गुरु भीतर मिल गया। सो रेवत मग्न होकर अपने जंगल में ही रहा। ___उसके अर्हत्व को घटा देख भगवान स्वयं सारिपुत्र आदि स्थविरों के साथ वहां पहुंचे। वह जंगल बहुत भयंकर था। रास्ते ऊबड़-खाबड़ और कंटकाकीर्ण थे। जंगली पशुओं की छाती को कंपा देने वाली दहाड़ें भरी दोपहर में भी सुनायी पड़ती थीं। लेकिन भिक्षुओं को इसकी कोई खबर नहीं मिली; कुछ पता नहीं चला। न तो रास्तों का ऊबड़-खाबड़ होना पता चला; न जंगली जानवरों की दहाड़ें सुनायी पड़ी। न कांटों से भरा हुआ जंगल दिखायी पड़ा। उन्हें तो सब तरफ फूल ही फूल खिले दिखायी पड़ते थे। उन्हें तो सब तरफ जंगल की परम शांति ध्वनित होती मालूम पड़ रही थी। - रेवत ने ध्यान में भगवान को आते देख उनके लिए सुंदर आसन बनाया। कुछ जंगल में विशेष चीजें तो उसके पास नहीं थीं। भिक्षु था। जो भी मिल सका-पत्थर, ईंट-जो भी मिल सके, उसी को लगाकर आसन बनाया। घास-पात जो मिल सको, वह बिछा दिया। फूल बिखेर दिए। ध्यान में भगवान को आता देख...।
भगवान खदिरवन में एक माह रहे। फिर वे रेवत को भी साथ लेकर वापस लौटे। आते समय दो भिक्षुओं के उपाहन, तेल की फोंफी और जलपात्र पीछे छूट गए। सो वे मार्ग से लौटकर जब उन्हें लेने गए, तो जो उन्होंने देखा, उस पर उन्हें भरोसा नहीं आया। किसी को भी न आता।
रास्ते बड़े ऊबड़-खाबड़ थे। जंगली पशु दहाड़ रहे थे। फूल तो सब खो गए थे। सारा जंगल कांटों से भरा था। इतना ही नहीं; रेवत का जो निवास स्थान घड़ी दो घड़ी पहले इतना रम्य था कि स्वर्ग को झेंपाए, वह कांटों ही कांटों से भरा था। और जिस परम सुंदर आसन पर रेवत ने बुद्ध को बिठाया था, उस पर कोई भिखारी भी बैठने को राजी न हो! ऐसा कुरूप था। इतना ही नहीं, घड़ीभर पहले जो भवन अपूर्व जीवंतता से नाच रहा था, वह बिलकुल खंडहर था। वह भवन था ही नहीं। वह किसी...न मालूम सदियों पहले कोई रहा होगा, उसके महल का खंडहर था।
वे तो भरोसा न कर सके। देखकर वहां, ऐसा लगा कि जैसे हमने कोई सपना देखा था।
श्रावस्ती लौटने पर महोपासिका विशाखा ने उनसे पूछा-उन दो भिक्षुओं से—आर्य रेवत का निवास स्थान कैसा था? मत पूछो, उपासिके! वे भिक्षु बोले, मत पूछो। ऐसी खतरनाक जगह हमने कभी देखी नहीं। खंडहर था खंडहर! निवास स्थान कहो मत। सब कांटों से भरा था। जंगल और भी बहुत देखे हैं, मगर ऐसा
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