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एस धम्मो सनंतनो
फिल्म देखी और बात खतम हो गयी। दुबारा कौन उस फिल्म को देखना चाहेगा! देखने को कुछ बचा ही नहीं। सतह थी, चुक गयी। __ शास्त्र हम कहते हैं ऐसी किताब को, जिसे जितनी बार देखा, उतनी बार नए अर्थ पैदा हुए। जितनी बार झांका, उतनी बार कुछ नया हाथ लगा। जितनी बार भीतर गए, कुछ लेकर लौटे। बार-बार गए और बार-बार ज्यादा मिला। क्यों? क्योंकि तुम्हारा अनुभव बढ़ता गया। तुम्हारे मनन की क्षमता बढ़ती गयी। तुम्हारे ध्यान की क्षमता बढ़ती गयी।
बुद्धों के वचन ऐसे वचन हैं कि तुम जन्मों-जन्मों तक खोदते रहोगे, तो भी तुम आखिरी स्थान पर नहीं पहुंच पाओगे। आएगा ही नहीं। गहराई के बाद और गहराई। गहराई बढ़ती चली जाती है। ___पाठ तो तभी समाप्त होता है, जब तुम भी शास्त्र हो जाते हो; उसके पहले समाप्त नहीं होता। पाठ तो तब समाप्त होता है, जब शास्त्र की गहराई तुम्हारी अपनी गहराई हो जाती है।
ऐसी ये अपूर्व गाथाएं थीं। अंतिम गाथाओं के पहले इस दृश्य को समझ लें। पहला दृश्यः
रेवत स्थविर, आयुष्मान सारिपुत्र के छोटे भाई थे। सारिपुत्र बुद्ध के अग्रणी शिष्यों में एक हैं। रेवत उनके छोटे भाई थे। वे विवाह के बंधन में बंधते-बंधते ही छूट भागे थे। बीच बारात से भाग गए थे! बारात पहुंची ही जा रही थी मंडप के पास, जहां पुजारी तैयार थे। स्वागत का आयोजन था। बैंड-बाजे बज रहे थे। ऐसे घोड़े से बीच में उतरकर रेवत भाग गए थे।
फिर जंगल में जाकर बुद्ध के भिक्षु मिल गए, तो उनसे उन्होंने प्रव्रज्या ग्रहण कर ली। और खदिरवन में एकांत, ध्यान और मौन के लिए चले गए थे। वहां उन्होंने सात वर्ष समग्रता से साधना की और अर्हत्व को उपलब्ध हुए।
उन्होंने अभी तक भगवान का दर्शन नहीं किया था। पहले सोचा रेवत ने कि योग्य तो हो लं, तब उन भगवान के दर्शन को जाऊं। पहले कुछ पात्रता तो हो मेरी। पहले आंख तो खोल लूं, जो देख सके उन्हें। पहले हृदय तो निखार लूं, जो झेल सके उन्हें। पहले भूमि तो तैयार कर लूं, ताकि वे भगवान अपने बीज फेंकें, तो बीज यूं ही न चले जाएं; उनका श्रम सार्थक हो। पहले इस योग्य हो जाऊं, तब उनके दर्शन को जाऊं।
तो रेवत सात वर्षों तक भगवान के दर्शन को नहीं गया। फिर सात वर्षों की समग्र साधना, ध्यान में सारी शक्ति को लगा देना; रेवत अर्हत्व को उपलब्ध हो गया। पहले इसलिए नहीं गया देखने भगवान को कि कैसे जाऊ! और जब अर्हत्व को उपलब्ध हो गया, तो जाने की कोई बात ही न रही। तो भगवान को जान ही लिया।
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