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एस धम्मो सनंतनो
भी, काटा भी; कढ़ाओं में जलाया भी। क्योंकि बुद्ध ने प्रक्रिया को बिलकुल उलटा कर दिया! यह सिर्फ शब्द की ही बात नहीं है, यह बुद्ध की अंतर्दृष्टि है कि हिंदू-विचार से उन्होंने बिलकुल एक दूसरी भावधारा को जन्म दिया।
स्वामी शब्द प्यारा है; कुछ बुरा नहीं है। लेकिन उसमें एक खतरा है। खतरा तो सभी शब्दों में होता है। स्वामी शब्द में एक खतरा है कि कहीं उससे संन्यासी अहंकारी न हो जाए। स्वामी शब्द प्यारा है। उसका मतलब होता है : अपना मालिक। और अपनी मालकियत तो चाहिए ही। अपना स्वामित्व तो चाहिए ही।
जो अपना मालिक नहीं है, वही तो संसारी है। उसके हजार मालिक हैं। हजार इच्छाएं उसकी मालिक हैं। धन उसका मालिक है; पद उसका मालिक है। उसके बहुत मालिक हैं। वह गुलाम है। ___ संन्यासी वही है, जिसने और सब तरह के मालिक हटा दिए और स्वयं अपना मालिक हो गया है। अब उसकी इंद्रियां उस पर काबू नहीं रखतीं; कब्जा नहीं रखतीं। अब इंद्रियां उसे नहीं चलाती; वह अपनी इंद्रियों को चलाता है। अब मन उसे नहीं चलाता; वह मन को अपने पीछे लेकर चलता है। मन उसकी छाया हो गया। उसने अपने आत्म-गौरव की घोषणा कर दी।
शब्द बड़ा प्यारा है; अर्थपूर्ण है; लेकिन खतरा है। खतरा यह है कि अहंकार का जन्म हो जाए। अकड़ आ जाए। और अहंकार पैदा हो जाए, तो परमात्मा से मिलने में बाधा पड़ गयी। फिर संसार लौट आया पीछे के दरवाजे से। ज्यादा सूक्ष्म होकर लौट आया। पहले धन की अकड़ थी; पद की अकड़ थी; अब संन्यास की अकड़ हो जाएगी।
बुद्ध ने इसलिए बदल दिया शब्द; ठीक दूसरे तल पर ले गए; कहा-भिक्षु। लेकिन याद रखनाः भिक्षु का अर्थ भिखारी नहीं है। भाषाकोश में तो है। लेकिन बुद्ध ने भिक्षु का अर्थ कियाः जो सब तरह से खाली है: भिक्षा का पात्र हो गया है जो। जिसके पास अपना कुछ भी नहीं है; जो अपने भीतर सिर्फ शून्य है। जिसने और सब तो छोड़ा ही छोड़ा, मैं का भाव भी छोड़ दिया, आत्मा भी छोड़ दी; अत्ता भी छोड़ दी। जो अनत्ता में जी रहा है; जो सिर्फ शून्य हो गया है। ऐसा व्यक्ति भिक्षु। भिखारी नहीं। क्योंकि भिखारी तो वह है, जो अभी आशा से भरा है कि मिल जाएगा; जो मांग रहा है कि मिल जाएगा; कि पा लूंगा। किसी न किसी तरह खोज लूंगा। मांग-मांगकर इकट्ठा कर लूंगा। लेकिन अभी इकट्ठे होने की दौड़ जारी है।
भिखारी धनाकांक्षी है। धनाढ्य नहीं है, मगर धनाकांक्षी है। धन उसके पास नहीं है, लेकिन धन की तृष्णा तो उसके पास उतनी ही है, जितनी किसी धनी के पास हो; शायद धनी से ज्यादा हो। क्योंकि धनी ने तो धन का थोड़ा अनुभव भी लिया। अगर उसमें थोड़ी अकल होगी, तो यह समझ में आ गया होगा कि धन मिलने से कुछ भी नहीं मिलता। लेकिन भिखारी को तो यह भी नहीं हो सकता। भिखारी की
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