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एस धम्मो सनंतनो
अगर तुम्हें मेरी बात समझ में नहीं आ रही है, तो दो उपाय हैं। या तो मैं ऐसी बात कहूं, जो तुम्हारी समझ में आ जाए। या तुम ऐसी समझ बनाओ कि जो मैं कहता हूं, वह समझ में आ जाए!
अगर मैं ऐसी बात कहूं, जो तुम्हें समझ में आ जाए, तो सार ही क्या होगा! वह तो तुम्हें समझ में आती ही है। फिर मेरे पास आने का कोई प्रयोजन नहीं है।
तो मैं तो वह बात नहीं कहूंगा, जो तुम्हारी समझ में आ सकती है। मैं तो वही कहूंगा, जो सच है। तुम्हें समझ में न आती हो, तो समझ को थोड़ा निखारो। थोड़ी धार रखो समझ पर। समझ को बदलो।
यही तो शिष्यत्व का अर्थ है कि अगर समझ में नहीं आता है, तो हम समझ को बदलेंगे। उसमें थोड़ी कठिनाई होगी। थोड़ा श्रम करना होगा। और लोग श्रम बिलकुल नहीं करना चाहते। तो फिर तुम अटके रह जाओगे तुम्हीं में। __या तो मैं तुम्हारे पास आऊं या तुम मेरे पास आओ। अच्छा यही होगा कि तुम मेरे पास आओ। उससे तुम्हारा विकास होगा। मैं तुम्हारे पास आऊं, उससे तुम्हारा कोई विकास नहीं होगा। उसमें तो तुम और जड़बद्ध हो जाओगे, जहां हो वहीं।।
तो जरूर मुझे इस ढंग से तुमसे बातें कहनी पड़ती हैं कि कुछ तो तुम्हारी समझ में आएं और कुछ तुम्हारी समझ में न आएं। __ अगर मैं बिलकुल ऐसी बात कहूं कि तुम्हें बिलकुल ही समझ में न आए, तो तुम्हारा मुझसे नाता टूट जाएगा। तब मैं कहीं दूर से चिल्ला रहा हूं और तुम कहीं बहुत दूर खोए हो। वहां तक आवाज भी नहीं पहुंचेगी। .
तो कुछ तो मैं ऐसी बातें कहता हूं, जो तुम्हारी समझ में आएं, ताकि नाता बना रहे। लेकिन अगर मैं उतनी ही बातें कहता रहूं, जो तुम्हारी समझ में आती हैं, तो नाता तो बना रहेगा, लेकिन लाभ क्या होगा? ऐसे नाते का प्रयोजन क्या?
तो कुछ ऐसी बातें भी कहता हूं, जो तुम्हारी समझ में न आएं। ताकि नाता बना रहे, सेतु जुड़ा रहे, तुम्हें कुछ समझ में आता रहे। और कुछ जो समझ में नहीं आता, उसे समझने के लिए तुम थोड़े हाथ ऊपर बढ़ाते रहो। तुम्हारे हाथ ऊपर बढ़ाने में ही किसी दिन आकाश को तुम छुओगे।
छठवां प्रश्न:
प्यारे भगवान! प्रेम। आपके सान्निध्य में तीन माह रहकर मेरा पूरा जीवन रूपांतरित हो गया है। पूरा जीवन बदल गया है। मैं आनंद से इतनी भर गयी हूं कि उसे शब्दों में व्यक्त नहीं कर पाती। अब तो जहां भी जाऊंगी, हृदय नर्तन करता रहेगा
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