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अप्प दीपो भव!
पांचवां प्रश्न:
मैं आपकी बातें बिलकुल ही नहीं समझ पाता हूं!
या तो मेरा कसूर होगा, या तुम्हारे पास अभी समझ ही नहीं है। मैं तो जो कह रहा -हूं, सीधा-साफ है। इसमें जरा भी उलझाव नहीं है। लेकिन मैं समझ सकता हूं; तुम्हें उलझाव दिखते होंगे। क्योंकि तुम्हारे देखने के ढंग, तुम्हारे सोचने के ढंग में शायद बात न बैठती हो। बैठ भी नहीं सकती।
अगर तुम्हें मेरी बात समझनी है, तो तुम्हें सोचने के ढंग बदलने होंगे। तुम्हें सोचने की नयी शैली सीखनी होगी। तुम्हें तर्क की सीमाओं के बाहर आना होगा। तुम्हें शब्दों के जाल से, शास्त्रों की रटी-रटायी बातों से थोड़ा ऊपर उठना होगा। तुम्हें आदमी बनना होगा। तुम्हें तोते होने से थोड़ा छुटकारा लेना होगा।
समझ के भी बहुत तल हैं। उतनी ही बात समझ में आती है, जहां तक हमारा तल होता है। ___मैंने सुना ः एक डाक्टर छोटे से बच्चे से बोला—उसकी जांच करता होगा-बेटे, तुम्हें नाक-कान से कोई शिकायत तो नहीं है? नाक से बलगम टपक रहा है। सर्दी-जुकाम इतने जोर से है बच्चे को कि उसे कुछ ठीक से सुनायी भी नहीं पड़ता। कान तक रुंध गए हैं। छाती घर-घर हो रही है। और डाक्टर पूछता है : बेटे, तुम्हें नाक-कान से कोई शिकायत तो नहीं है?
बच्चे ने कहा ः जी है। वे कमीज उतारते बीच में आते हैं।
अपनी-अपनी समझ। अब बच्चे की तकलीफ यह है कि जब भी कमीज उतारता है, तो नाक-कान बीच में आते हैं। एक तल है।
तुम्हें शायद मेरी बात समझ में न आती हो। हो सकता है।
एक मित्र ने मुल्ला नसरुद्दीन से कहाः मुल्ला जी! मैं विवाह इस कारण नहीं करना चाहता हूं कि मुझे स्त्रियों से बहुत डर लगता है।
मुल्ला ने कहा : अगर ऐसी बात है, तब तो तुम विवाह तुरंत कर डालो। मैं तुम्हें अपने अनुभव से कहता हूं कि विवाह के बाद एक ही स्त्री का भय रह जाता है।
अपना-अपना अनुभव। अपनी-अपनी समझ।
एक बाप ने अपने बेटे से कहा : जमाना बहुत आगे बढ़ गया है। तुम खुद अपने योग्य लड़की देख लो।
बेटा बड़ा प्रसन्न हुआ। और तो कभी पिता के चरण न छूता था। आज उसने पिता के चरण छुए। और पिता की आज्ञा मानकर पुत्र ने नियमित रूप से बालकनी में खड़े होकर लड़की देखना शुरू कर दिया।
तुम वही समझ सकते हो, जो तुम समझ सकते हो।
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