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________________ अप्प दीपो भव! मारकर जीओगे। तुम तो मजे से रहो। अभी मौत कहां। और आदमी की दृष्टि बड़ी संकीर्ण है। अगर कोई बात दस साल बाद है, तो तुम्हें दिखायी ही नहीं पड़ती। बहुत करीब हो, तो ही दिखायी पड़ती है। आदमी दूर-दृष्टि नहीं है। तुम सोचो। कोई तुमसे कहे, कल तुम्हें मरना है। तो शायद थोड़ा झटका लगे। लेकिन कोई कहे कि एक सप्ताह बाद। तो उतना झटका नहीं लगता। और एक साल बाद। तो तुम कहते हो, देखेंगे जी। दस साल बाद। तो तुम कहते होः छोड़ो भी; कहां की बकवास लगा रखी है! सत्तर साल बाद। तो वह तो ऐसा लगता है कि करीब-करीब अमरता मिल गयी! करना क्या है और! सत्तर साल कहीं पूरे होते हैं? इतना लंबा फासला! फिर तुम्हें दिखायी नहीं पड़ता। दुख अभी है; मृत्यु दूर है। शायद इसीलिए तुम डरते नहीं। क्योंकि जो दुख से डरता है, वह मृत्यु के प्रति वस्तुतः अभय को उपलब्ध नहीं हो सकता है। मगर सिर्फ दूर है, इसलिए तुम्हें अभी अड़चन नहीं है। तुम कहते हो कि जब होगा, तब देख लेंगे। अभी तो यह सिरदर्द जान खा रहा है। कि अभी तो यह चिंता मन को पकड़े हुए है। अभी तो इस धंधे में दांव लगा दिया है; कहीं सब न खो जाए। अभी यह नुकसान लग गया है दुकान में। अभी यह पत्नी छोड़कर चली गयी! अभी ये छोटी-छोटी बातें कांटे की तरह चुभ रही हैं। और जब ये छोटी-छोटी बातें कांटे की तरह चुभ रही हैं, तो जब तलवार उतरेगी मृत्यु की और गरदन काटेगी, तो तुम सोचते हो, तुम सुख से मर सकोगे? असंभव है। जब कांटे इतना दुख दे रहे हैं, तो तलवार, जो बिलकुल काट जाएगी! कांटे तो छोटे-छोटे हैं। तलवार तो पूरी तरह छिन्न-भिन्न कर देगी। ____ नहीं; तुम्हें पता नहीं है मौत का। अभी तुम्हें दुख का ही पता नहीं है, तो मौत का क्या पता होगा! तुम दुख का साक्षात्कार करो। तुम दुख को देखना शुरू करो। इसी दुख से पहचान होती जाए, इसी दुख से धीरे-धीरे तुम्हारे भीतर बल पैदा होता जाए, तो एक दिन ऐसी घड़ी आएगी कि मौत भी आएगी और तुम अविचल खड़े रहोगे। मौत तुम्हें घेर लेगी, और तुम्हारे भीतर कोई झंझावात न होगा। मौत आएगी, और तुम अछूते रह जाओगे। वह परम घड़ी...। ___ और मौत आनी तो निश्चित है। इस शरीर में थोड़ी देर ही बस सकते हो, ज्यादा देर नहीं। बसने योग्य यहां ज्यादा कुछ है भी नहीं। खड़खड़ाता है आह ! सारा बदन खपच्चियां जैसे बांध रक्खी हैं खोखले बांस जोड रक्खे हों कोई रस्सी कहीं से खुल जाए 265
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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