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________________ एस धम्मो सनंतनो न जख्म छुए, न दर्द पहुंचे बस, एक कुंवारी सुबह का जिस्म पहना दूं रूह को मैं मगर तपी जब दुपहर दर्दो की, दर्द की धूप से जो गुजरा तो रूह को छांव मिल गयी है अजीब है दर्द और तस्कीन का साझा रिश्ता मिलेगी छांव तो बस कहीं धूप में मिलेगी दुख निखारता है। दुख स्वच्छ करता है। दुख मांजता है; मांजता है और मांजता भी। अजीब है दर्द और तस्कीन का साझा रिश्ता __मिलेगी छांव तो बस कहीं धूप में मिलेगी दुखों से भागो मत। दुखों को जीयो। दुखों से होशपूर्वक गुजरो। और तुम पाओगेः हर दुख तुम्हें मजबूत कर गया। हर दुख तुम्हारी जड़ों को बड़ा कर गया। हर दुख तुम्हें नया प्राण दे गया। हर दुख तुम्हें फौलाद बना गया। दुख का कुछ कारण है। दुख व्यर्थ नहीं है। दुख की कुछ सार्थकता है। दुख की सार्थकता यही है कि दुख के बिना कोई आदमी आत्मवान नहीं हो पाता। पोच रह जाता है, पोचा रह जाता है। इसलिए अक्सर जिनको सुख और सुविधा में ही रहने का मौका मिला है, उनमें तुम एक तरह की पोचता पाओगे। एक तरह का छिछलापन पाओगे। सुखी आदमी में, तथाकथित सुखी आदमी में गहराई नहीं होती। उसके भीतर कोई आत्मा नहीं होती। ___ इसलिए तुम अक्सर धनी घरों में मूढ़ व्यक्तियों को पैदा होते पाओगे। धनी घर के बच्चे बुद्ध रह जाते हैं। सब सुख-सुविधा है; करना क्या है! सब वैसे ही मिला है; पाना क्या है? संघर्ष नहीं, तो संकल्प नहीं। और संकल्प नहीं, तो आत्मा कहां? और संकल्प नहीं, तो समर्पण कैसे होगा! जब कमाओगे संकल्प को, जब तुम्हारा मैं प्रगाढ़ होगा, तभी किसी दिन उसे झुकाने का मजा भी आएगा। नहीं तो क्या खाक मजा आएगा! जिसके पास अहंकार नहीं है, वह निरअहंकारी नहीं हो सकता। इस बात को खूब समझ लेना। जिसके पास गहन अहंकार है, वही निरअहंकारी हो सकता है। निरअहंकारिता अहंकार की आखिरी पराकाष्ठा के बाद घटती है। तुम कहते हो : 'मैं मृत्यु से इतना नहीं डरता हूं। लेकिन दुखों से बहुत डरता हूं।' मृत्यु तो दूर है, दुख अभी है। शायद इसीलिए मृत्यु से नहीं डरते कि आएगी, तब आएगी। अभी कहां! दिखा लेते होओगे हथेली जाकर हस्तरेखाविद को और कुंडली पढ़वा लेते होओगे ज्योतिषी से। वह कहता होगाः अभी नहीं। कोई फिकर नहीं है। अभी तुम सत्तर साल जीओगे। तुम तो सौ साल जीओगे। तुम तो सबको 264
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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