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________________ अप्प दीपो भव ! यहां के दुख तो जाने-माने, परिचित हैं । मृत्यु पता नहीं किन दुखों की नयी श्रृंखला की शुरुआत हो ! इसलिए डरते हैं । अन्यथा मृत्यु से डरने का कोई कारण नहीं है। पहचानी चीज से ही लोग डरते हैं । अजनबी - अनजान से डरने का क्या कारण हो सकता है? हो सकता है : मृत्यु तुम्हें सुख में ले जाए, स्वर्ग ले जाए। कौन ! अगर तुम बहुत विचारशील हो, सॉक्रेटीज जैसे, तो नहीं डरोगे। सुकरात मर रहा है। और उसके शिष्य उससे पूछते हैं कि आप डर नहीं रहे हैं ? मृत्यु आ रही है। जहर तैयार किया जा रहा है। जल्दी जहर दिया जाएगा। आप मृत्यु से डरते नहीं ? सुकरात ने कहाः देखो; मैं सोचता हूं, दो ही संभावनाएं हैं। या तो मैं मर ही जाऊंगा, कुछ बचेगा नहीं, तो फिर डर क्या ? जिसको डर लगना है, वही नहीं बचेगा, तो डर किसको ? जन्म के पहले का मुझे कुछ पता नहीं है । तो मुझे कोई अड़चन नहीं होती। मुझे यह बात सोचकर कोई बहुत मुश्किल नहीं पड़ती कि जन्म के पहले मैं नहीं था। तो जब था ही नहीं, तो दुख क्या ! फिर मौत के बाद नहीं हो जाऊंगा, तो दुख क्या ! या तो यह होगा। या यह होगा कि मैं फिर भी बचूंगा । जब बचूंगा ही, तो फिर डर क्या ? फिर देख लेंगे। यहां भी जूझ रहे थे, वहां भी जूझ लेंगे। जो होगा, मुकाबला कर लेंगे। इसलिए मैं परेशान नहीं हूं। मैं सोच रहा हूं कि मरकर ही देखें कि बात क्या है असल में । बहुत सोच-विचार वाला आदमी हो, तो मृत्यु से भी नहीं डरेगा। डरने का कोई कारण नहीं रह गया। लेकिन दुख से आदमी डरता है। दुख से तुम्हारा परिचय है। तुम जानते हो दुखों को । दुखों से तुम्हारी खूब पहचान है। दुखों से ही पहचान है । सुख की तो सिर्फ आशा रही है, सपना रहा है। दुखों से मिलना हुआ है। तो स्वाभाविक है कि तुम दुख से डरते हो | सभी दुख से डरतें हैं। और जब तक दुख से डरेंगे, तब तक दुखी रहेंगे। क्योंकि जिससे तुम डरोगे, उसे तुम समझ न पाओगे । और दुख मिटता है समझने से । दुख मिटता है जागने से। दुख मिटता है दुख को पहचान लेने से। इसीलिए तो दुनिया दुखी है कि लोग दुख से डरते हैं और पीठ किए रहते हैं; तो दुख का निदान नहीं हो पाता। दुख पर अंगुली रखकर नहीं देखते कि कहां है ! क्या है ! क्यों है ! दुख में उतरकर नहीं देखते कि कैसे पैदा हो रहा है ! किस कारण हो रहा है ! भय के कारण अपने ही दुख से भागे रहते हैं । तुम कहीं भी भागो, दुख से कैसे भाग पाओगे । दुख तुम्हारे जीवन की शैली में है। तुम जहां जाओगे, वहीं पहुंच जाएगा। मैंने सुना है : : एक आदमी को डर लगता था अपनी छाया से । और उसे बड़ा 261
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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