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________________ अप्प दीपो भव! ऐसा ही तुम जब मुझसे पूछते हो कि जीसस और मेरे वक्तव्य में विरोधाभास है; तो तुम भी वही तर्क की बात कर रहे हो। ____एक दिन चढ़ना पड़ता है ट्रेन में; एक दिन उतरना पड़ता है। इनमें विरोध नहीं है। एक बार सीढ़ी पर चढ़ना पड़ता है, फिर सीढ़ी से उतरना भी पड़ता है। तुम छत की तरफ जा रहे हो। मैं तुमसे कहता हूं: सीढ़ियां चढ़ो। सीढ़ियों से तुम पूछते होः सीढ़ियों पर चढ़ने से हम छत पर पहुंच जाएंगे? मैं कहता हूं : जरूर पहुंच जाओगे। फिर तुम आखिरी पायदान पर पहुंचकर खड़े हो गए। तुम कहते होः अभी तक हम छत पर नहीं पहुंचे। आखिरी पायदान पर भी छत नहीं है, यह बात सच है। जैसे छत पहले पायदान पर नहीं है, वैसे ही आखिरी पायदान पर भी छत नहीं है। अभी तुम्हें आखिरी पायदान छोड़ना पड़ेगा, तब तुम छत पर प्रवेश कर पाओगे। लेकिन तुम कहते हो तो फिर चढ़ाया ही क्यों? ये सौ सीढ़ियां चढ़कर अब किसी तरह बामुश्किल तो हांफता हुआ पहुंचा। अब आप कहते हैं, छोड़ो। इतनी मेहनत से तो चढ़ा, अब कहते हो, छोड़ो! यह तो आप बड़ी विरोधाभासी बात कह रहे हैं! पहली सीढ़ी पर कहा था, चढ़ो। जीसस पहली सीढ़ी पर बोल रहे थे। क्योंकि जीसस इस देश में आकर संदेश लेकर गए। जीसस की उम्र के तीस वर्ष सत्य की खोज में लगे। इजिप्त, और भारत, और तिब्बत- इन सारे देशों में उन्होंने भ्रमण किया। उस समय बुद्ध-धर्म अपनी प्रखरता में था। नालंदा जीवंत विश्वविद्यालय था। बहुत संभावना है कि जीसस नालंदा में आकर रहे। उन्होंने यहां के परम सत्य पहचाने, समझे, सीखे। ___ यही तो अड़चन हो गयी। इसलिए तो वे कुछ ऐसी बातें कहने लगे, जो यहूदियों को बिलकुल न जंची। क्योंकि यहूदी शास्त्रों से उनका मेल नहीं था। जीसस कुछ ऐसी बातें ले आए, जो विदेशी थीं-यहूदी विचार-चिंतन धारा के संदर्भ में। यहूदियों को बात जंची नहीं। यहूदी एक ढंग से सोचते थे। अगर जीसस ने उसी ढंग की ही बात कही होती, उसी सिलसिले में कही होती, तो यहूदियों ने उन्हें एक पैगंबर माना होता। उनको सूली देनी पड़ी। क्योंकि वे कुछ ऐसी बातें ले आए, जो यहूदी कानों के लिए बिलकुल अपरिचित थीं। खास संदेश जो लेकर आए थे जीसस, वह था संदेश बुद्ध के ध्यान का, जागो! इसलिए जीसस बार-बार, हजार बार दोहराते हैं बाइबिल में-अवेक, बी अवेयर, वेक अप; जागो; उठो; होश सम्हालो; सावधान हो जाओ; चेतो। मगर ये बातें इस देश में तो समझ में आ सकती थीं, क्योंकि बुद्ध के पहले और हजारों बुद्धों की परंपरा इस देश में है। बुद्ध कुछ नए नहीं हैं। बुद्ध एक बड़ी लंबी धारा के हिस्से हैं; एक श्रृंखला के हिस्से हैं; एक कड़ी हैं। उनके पहले और बहुत बुद्ध हुए हैं। यह भाषा यहां परिचित थी। यही भाषा जाकर यहूदियों के बीच बिलकुल अपरिचित हो गयी। 259
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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