SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 273
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो खोलो। खटखटा रहा हूं। दरवाजा खोलो। राबिया ने दूसरा सत्य कहा। राबिया यह कह रही है कि बहुत खटखटा चुका। अब खटखटाना छोड़। जरा खटखटाना छोड़कर आंख खोल। तू खटखटाने में ही उलझा है और दरवाजा खुला है! अब तू जरा आंख खोल। खटखटाने की उलझन से मुक्त हो। छोड़ यत्न, और देख-क्या है। जो है, वही मुक्तिदायी है। इसलिए एक दिन श्रम करना पड़ता है और एक दिन श्रम छोड़ना पड़ता है। ऐसा समझो। मैंने सुनी है एक कहानी कि कुछ लोग अमृतसर से ट्रेन में सवार हुए; हरिद्वार जा रहे थे। एक आदमी जो उस झुंड में हरिद्वार जा रहा था, तीर्थयात्रा को, बड़ा दार्शनिक था, बड़ा तार्किक था। भीड़-भाड़ बहुत थी। मेले के दिन होंगे। ट्रेन लदी थी। लोग सब तरफ भरे थे। ऊपर भी चढ़े थे। दरवाजों पर अटके थे। . खिड़कियों से लोग भीतर घुसने की कोशिश में लगे थे। उस दार्शनिक को भी उसके साथी खींच रहे थे। वह यह कहता था कि भई, मेरी बात तो सुनो! इसमें से फिर उतरना तो नहीं पड़ेगा? इतनी मेहनत से चढ़ें, और फिर उतरना पड़े, तो सार क्या? मित्रों ने कहाः तुम्हारा दर्शन बाद में। अभी गाड़ी छूटने का वक्त हुआ जा रहा है। सीटी बजी जा रही है। उन्होंने खींच-खांचकर उसको...। __ वह पूछता ही जा रहा है कि मैं एक बात पूछना चाहता हूं। मुझे खींचो मत। इसमें से उतरना तो नहीं पड़ेगा? क्योंकि अगर उतरना ही हो, तो इतनी फजीहत क्या करवानी! तो हम पहले से ही अपने प्लेटफार्म पर खड़े हैं। मगर उन्होंने नहीं सुना। उन्होंने खींच-खांच लिया कि यह बकवास में समय गंवा देगा। उसको खींचकर अंदर कर लिया। उसकी कमीज भी फट गयी। और हाथ की चमड़ी भी छिल गयी। पंजाबी अब जानते ही हैं आप कि खींचातानी करें...। अब यह कोई गुजरात थोड़े ही है कि...। अमृतसर! उन्होंने ठीक से ही खींचातानी की होगी। खींचतानकर उसे अंदर कर लिया। वह चिल्लाता भी रहा। उन्होंने उसकी फिक्र ही नहीं की। पंजाबी और दर्शनशास्त्र की फिकर करें! बिलकुल ही गलत बात है। और ज्यादा बकवास की होगी, तो दो-चार हाथ लगाकर उसको चुप कर दिया होगा; कि चुप बैठ। फिर हरिद्वार आया। अब वह दार्शनिक उतरे नहीं! आखिर वह भी पंजाबी है! उसने कहा ः जब एक दफे चढ़ गए, तो चढ़ गए। अब उतरना क्या? मैंने पहले ही कहा था कि मुझे चढ़ाओ मत, अगर उतारना हो। अब वे फिर खींच रहे हैं कि भई! हद्द हो गयी! अब हरिद्वार आ गया! पर उसकी बात का अर्थ यह है, वह यह कह रहा है कि जब उतरना ही है, तो फिर चढ़ना क्या! जब चढ़ ही गए, तो फिर उतरना क्या? वह शुद्ध तर्क की बात कह रहा है। 258
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy