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________________ अप्प दीपो भव! नहीं है। फिर भी एक प्रयोग करके देख लिया। फिर उठकर अपना रेडियो चलाने लगोगे, या टी.वी. शुरू कर दोगे। या अखबार पढ़ने लगोगे। या चले क्लब की तरफ! कि चलो, दो हाथ जुए के खेल आएं। कि शराब ढाल लो! . वह जो छह वर्ष की तपश्चर्या है, वह अनिवार्य हिस्सा है। उसके बिना नहीं घटता। और मैं तुम्हें यह भी याद दिला दूं कि अगर बुद्ध उसी तपश्चर्या में लगे रहते साठ साल तक, तो भी नहीं घटता। ____एक चरम सीमा आ जाती है करने की; जहां करने की चरम सीमा आ गयी, वहां करने को भी छोड़ देना जरूरी है। पहले कर्म को चरम सीमा तक ले आना है; सौ डिग्री पर उबलने लगे कर्म, फिर कर्ता के भाव को भी विदा कर देना। ये दोनों बातें सच हैं। __राबिया के घर एक सूफी फकीर हसन ठहरा हुआ था। वह रोज सुबह प्रार्थना करता था। उसने सुना होगा जीसस का वचन कि खटखटाओ और द्वार तुम्हारे लिए खोल दिए जाएंगे। आस्क एंड इट शैल बी गिवेन। सीक एंड यू विल फाइंड। नाक एंड द डोर शैल बी ओपंड अनटु यू।। उसने ये वचन सुने होंगे। ये वचन उसे बहुत जंच गए थे। उसने इनकी प्रार्थना बना ली थी। वह रोज सुबह काबा की तरफ हाथ जोड़कर कहता : हे प्रभु! कितनी देर से खटखटा रहा हूं, दरवाजा खोलिए। कितनी देर हो गयी खटखटातेखटखटाते! कब दरवाजा खुलेगा? अपना वचन याद करो—कि खटखटाओगे और दरवाजा खुलेगा। और मैं खटखटाए जा रहा हूं! और मैं खटखटाए जा रहा हूं! दरवाजा खुलता नहीं। राबिया ने एक दिन सुना, दो दिन सुना, तीन दिन सुना...। राबिया बड़ी अदभुत औरत थी। थोड़ी ही स्त्रियां दुनिया में हुई हैं राबिया की कोटि की-मीरा, सहजो, दया, लल्ला-बहुत थोड़ी सी स्त्रियां; उंगलियों पर गिनी जा सकें। राबिया उसी कोटि की स्त्री है, जिस कोटि के बुद्ध, जिस कोटि के महावीर, जिस कोटि के कृष्ण, क्राइस्ट। एक दिन सुबह फिर हसन वही कर रहा था। हाथ फैलाए हुए। आंसू बहे जा रहे हैं आंखों से और कह रहा है : अब खोलो प्रभु! कब से खटखटा रहा हूं। राबिया पीछे से आयी और उसका सिर झंझोड़कर बोली कि बंद कर बकवास। दरवाजे खुले हैं। तू खटखटा क्यों रहा है! दरवाजे कभी बंद ही नहीं थे नासमझ। दरवाजे सदा से खुले हैं। उसके दरवाजे बंद कैसे हो सकते हैं! तूने यह कहां की बकवास लगा रखी है! तू जिंदगीभर यही बकता रहेगा और दरवाजा खुला है। अब परमात्मा भी क्या करे। वह भी अचकचाकर बैठा होगा कि करना क्या! दरवाजा खुला है। अब और क्या खोलना! और ये सज्जन यही कहे जा रहे हैं कि दरवाजा 257
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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