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________________ एस धम्मो सनंतनो एक दिन श्रम करो, प्रयास करो, योग साधो। और फिर एक दिन सब साधना को भी पानी में बहा दो। और खाली बैठे रह जाओ। तो ही पहंचोगे। नहीं तो अक्सर यह हो जाता है कि परमात्मा को पाने की दौड़ में तुम्हारा चित्त नया संसार बना लेता है। फिर चित्त के भीतर हजार तरह के विचार उठने लगते हैं, तरंगें उठने लगती हैं। दुकान की तरंगें हैं, मंदिर की भी तरंगें हैं। संसार की तरंगें हैं और फिर निर्वाण की भी तरंगें हैं! लेकिन तरंगों से तुम मुक्त हो जाओगे, तभी मिलेगा न निर्वाण। निर्वाण का अर्थ है : निस्तरंग हो जाना। निर्वाण का अर्थ है : निर्वाण पाने का विचार भी न रह जाए। बुद्ध के जीवन में यह बात बिलकुल साफ है। छह वर्ष तक कठोर तपश्चर्या की। और फिर छह वर्ष के बाद एक दिन तपश्चर्या का त्याग कर दिया। उसी तरह जिस तरह एक दिन राजमहल का त्याग कर दिया था, तपश्चर्या का भी त्याग कर दिया। उसी रात बुद्धत्व फलित हुआ। __ अब यह सवाल सदियों से पूछा जाता रहा है कि बुद्ध को बुद्धत्व कैसे मिला? छह वर्ष की तपश्चर्या के कारण मिला या तपश्चर्या के त्याग से मिला? जो ऐसा प्रश्न पूछते हैं, उन्होंने प्रश्न को गलत ढंग दे दिया। शुरू से ही गलत ढंग दे दिया। उनको जो भी उत्तर मिलेंगे, वे गलत होंगे। अगर गलत प्रश्न पूछा, तो गलत उत्तर पा लोगे। प्रश्न ठीक होना चाहिए। __ जब तुमने यह पूछ लिया कि बुद्ध को छह वर्ष की तपश्चर्या से मिला? क्योंकि मिला छह वर्ष के बाद एक रात। या उस सांझ को उन्होंने तपश्चर्या छोड़ दी थी, उसी रात घटना घटी! छह वर्ष की तपश्चर्या है और उसी रात तपश्चर्या का त्याग भी किया। मिला क्यों? मिला कैसे? क्या कारण है ? तपश्चर्या कारण है या उस रात तपश्चर्या का छोड़ देना कारण है? ___ मैं तुमसे कहूंगा, दोनों कारण हैं। तपश्चर्या न की होती, तो छोड़ते क्या खाक! छोड़ने के पहले तपश्चर्या होनी चाहिए। जैसे कोई गरीब आदमी कहे कि सब त्याग कर दिया। इसके त्याग का क्या अर्थ होगा? हम पूछेगे: तेरे पास था क्या? वह कहे : था तो मेरे पास कुछ नहीं। लेकिन सब त्याग कर दिया। इसके त्याग का कोई मूल्य नहीं है। कोई सम्राट त्यागे, तो मूल्य है। जब कुछ था ही नहीं, तो त्याग क्या किया है ? होना चाहिए त्यागने के पहले। बुद्ध ने तपश्चर्या छोड़ी, क्योंकि तपश्चर्या की थी। तुम ऐसे ही अपनी आराम कुर्सी पर लेट जाओ और कहो कि चलो, आज हमने तपश्चर्या छोड़ दी। हो जाए बुद्धत्व का फल! आज की रात लग जाए। फिर तुम थोड़ी देर में बैठे-बैठे थकनें लगोगे कि कुछ नहीं हो रहा है! आंख खोल-खोलकर देखोगे कि अभी तक बुद्धत्व आया नहीं! करवट बदलोगे। फिर थोड़ी देर में सोचोगे कि अरे! यह सब बकवास है। ऐसे कुछ होने वाला नहीं है। हमें तो पहले ही मालूम था कि कुछ होता-जाता 256
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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