SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 270
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अप्प दीपो भव! पर लटकाते! ___ लाओत्सू का वचन ठीक इससे उलटा लगेगा तुम्हें; वही मेरा वचन भी है। लाओत्सू कहता है : मांगा-और चूक जाओगे। खोजा और भटके। खोजो मत-और पा लो। यह कुछ और तल का वक्तव्य है। यह किन्हीं और तरह के लोगों से कहा गया है। लाओत्सू पर किसी ने पत्थर भी नहीं मारा। सूली की तो बात अलग। जिनके बीच लाओत्सू रहा होगा, ये बड़े अदभुत लोग थे। अलग-अलग कक्षाओं में ये बातें कही गयी थीं। पहली कक्षा में बच्चे को कहना पड़ता है : ग गणेश का। अब विश्वविद्यालय की अंतिम कक्षा में भी अगर यही कहा जाए–ग गणेश का, तो मूढ़ता हो जाएगी। और दोनों जरूरी हैं। जीसस जिनसे बोल रहे थे, वे बिलकुल प्राथमिक कक्षा के विद्यार्थी थे। और लाओत्सू जिनसे बोल रहा था, वह आखिरी चरम कोटि की बात बोल रहा था। मगर फिर भी वक्तव्य विरोधी लगते हैं। तुम्हें हैरानी होगी कि मान लो यह भी ठीक है कि पहली कक्षा में कहते हैं : ग गणेश का। तो आखिरी कक्षा में यह थोड़े ही कहते हैं कि ग गणेश का नहीं! रहता तो ग गणेश का ही है। विद्यार्थी जान गए, इसलिए अब कहना नहीं पड़ता कि ग गणेश का। वक्तव्य फिर भी विरोधी लगते हैं। क्योंकि जितना फासला पहली कक्षा में और विश्वविद्यालय की कक्षा में होता है, वह फासला विपरीतता का नहीं है। वह एक ही श्रृंखला का है। और सांसारिक व्यक्ति में और आध्यात्मिक व्यक्ति में जो फासला होता है, वह विपरीतता का है; एक ही श्रृंखला का नहीं है। एक जगह जाकर इस जगत के सारे सत्य उलटे हो जाते हैं। समझने की कोशिश करोगे, तो समझ में आ जाएगा। पहली बात ः जिसने कभी खोजा ही नहीं, वह कैसे खोज पाएगा। और लाओत्सू कहता है : जो खोजता ही रहा, वह कैसे खोज पाएगा? एक जगह आनी चाहिए, जहां खोज भी छूट जाए। नहीं तो खोज की ही चिंता, खोज की ही आपा-धापी, खोज की ही भाग-दौड़ मन को घेरे रहेगी। एक आदमी भागा चला जा रहा है। वह कहता है : मंजिल पर जाना है। भागेगा नहीं, तो कैसे पहुंचूंगा? फिर यह मंजिल पर पहुंचकर भी भागता रहे, तो यह कैसे पहुंचेगा? तो इस आदमी को हमें उलटी बातें कहनी पड़ेंगी। इससे कहना पड़ेगा: जब मंजिल से दूर हो, तो मंजिल की तरफ भागो। और जब मंजिल करीब आने लगे. तो दौड़ कम करने लगो। और जब मंजिल बिलकुल आ जाए, तो रुक जाओ। अगर मंजिल पर आकर भी भागते रहे, तो चूक जाओगे। __एक दिन भागना पड़ता है और एक दिन रुकना भी पड़ता है। एक दिन चलना पड़ता है और एक दिन ठहरना भी पड़ता है। इनमें विपरीतता नहीं है। 255
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy