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एस धम्मो सनंतनो
गया, वहीं रूह को सांस आती है। वहीं पहली दफा तुम्हारा आत्मिक जीवन शुरू होता है। वहीं तुम्हारा पुनर्जन्म होता है।
उस घड़ी में परमात्मा से मिलन है। वह घड़ी बड़ी एकांत की घड़ी है। दसरा तो क्या, तुम भी वहां नहीं होते। इतना एकांत होता है कि एक भी वहां नहीं होता। दो तो मिट ही गए होते हैं। अंततः एक भी मिट गया होता है। सिर्फ विराट शून्य होता है। सब अनुपस्थित होता है। उस खाली, रिक्त स्थान में ही परमात्मा का प्रवेश है।
इसलिए बुद्ध ठीक कहते हैं, अपने दीए आप बनो। इसका यह मतलब नहीं है कि गुरु की कोई जरूरत नहीं है। इसका मतलब यह भी नहीं कि गुरु के बिना कोई पहुंच नहीं सकता। __ इसलिए मैंने कहा, नाजुक सवाल है। नाजुक इसलिए कि गुरु की जरूरत है और नहीं भी है। इतनी ही जरूरत है कि तुम इशारे समझ लो और चल पड़ो।
सदा गुरु के पीछे ही चलते रहने की जरूरत नहीं है। इशारा समझ में आ जाए, फिर भीतर चलना है, फिर किसी के पीछे नहीं चलना है।
उंगलियों को मत पकड़ लेना। उंगलियां जिस तरफ इशारा करती हैं, जिस चांद की तरफ, उसको देखना और चल पड़ना।
तीसरा प्रश्नः
आप कहते हैं: मांगो मत; दो, लुटाओ। और जीसस कहते हैं: मांगो-और मिलेगा। दो बुद्धपुरुषों के वक्तव्य में इतना विरोध क्यों है?
दो नों वक्तव्य अलग-अलग घड़ियों में दिए गए वक्तव्य हैं। अलग-अलग
लोगों को दिए गए वक्तव्य हैं। विरोध जरा भी नहीं है। __ समझो। जीसस ने कहा है : मांगो-और मिलेगा। खटखटाओ-और द्वार खुलेंगे। खोजो-और पाओगे। बिलकुल ठीक बात है। जो खोजेगा ही नहीं, वह कैसे पाएगा? जो मांगेगा ही नहीं, उसे कैसे मिलेगा? और जो द्वार पर दस्तक भी न देगा, उसके लिए द्वार कैसे खुलेंगे? सीधी-साफ बात है। यह एक तल का वक्तव्य है।
जीसस जिनसे बोल रहे थे, जिन लोगों से बोल रहे थे, इनके लिए जरूरी था। ऐसा ही वक्तव्य जरूरी था। इस वक्तव्य में खयाल रखना वे लोग, जिनसे जीसस बोल रहे थे। ये ऐसे लोग थे, जिन्होंने जीसस को सूली पर लटकाया। इन लोगों के पास अध्यात्म जैसी कोई चित्त की दशा नहीं थी। नहीं तो ये जीसस को सूली
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