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अप्प दीपो भव!
मुझसे इक नज्म का वादा है, मिलेगी मुझको एक गीत तुम्हारे भीतर घटने को है। वायदा है एक गीत का कि मैं आऊंगा; बरसूंगा तुम पर। लेकिन कब? जब सब समाप्त हो जाए।
मुझसे इक नज्म का वादा है, मिलेगी मुझको
डूबती नब्जों में जब दर्द को नींद आने लगे जब तुम्हारे जीवन की सारी पीड़ाएं छूट जाएं; जब तुम्हारे दर्द की आदतें मिट जाएं। .
जर्द-सा चेहरा लिए चांद उफक पर पहुंचे दिन अभी पानी में हो, रात किनारे के करीब
न अंधेरा, न उजाला हो... द्वंद्व जहां मिट जाए।
न अंधेरा, न उजाला हो, न यह रात, न दिन इसलिए तो हम संध्या शब्द का उपयोग करते हैं प्रार्थना के लिए। क्यों संध्या का उपयोग करते हैं? संध्या का अर्थ ही प्रार्थना हो गया। लोग कहते हैं : अभी वे संध्या कर रहे हैं। संध्या का मतलब?
न अंधेरा हो, न उजाला हो, न यह रात, न दिन मध्य में हो। सब द्वंद्व छूट जाएं। सब अतियां छूट जाएं। न इस तरफ, न उस तरफ। कोई झुकाव न रह जाए, कोई चुनाव न रह जाए, कोई विकल्प न रह जाए। न जीवन, न मृत्यु। न वसंत, न पतझड़। न सुख, न दुख। संध्या आ जाए।
दिन अभी पानी में हो, रात किनारे के करीब न अंधेरा, न उजाला हो, न यह रात, न दिन
जिस्म जब खत्म हो.. और जिसे तुमने अब तक जाना है कि मैं हूं, जिसे तुमने माना है कि मैं हूं, वह जब मिटने लगे...। . जिस्म जब खत्म हो और रूह को जब सांस आए
ये जो सांसें तुमने समझी हैं, जीवन है, यह तुम्हारी असली सांस नहीं है। इस सांस से तो केवल देह चलती है। एक और सांस है। जब इस सांस से तुम्हारा संबंध छूट जाता है, तब दूसरी सांस पैदा होती है।
__ जिस्म जब खत्म हो और रूह को जब सांस आए
मुझसे इक नज्म का वादा है, मिलेगी मुझको वहीं वह संगीत उतरता है, जिसे समाधि कहो, सत्य कहो, सौंदर्य कहो, शिवत्व कहो, मुक्ति कहो, मोक्ष कहो, निर्वाण कहो। लेकिन उस परम एकांत में-जहां सब छूट गया-संसार गया, और गए, मित्र गए, शत्रु गए; देह भी गयी, श्वास भी गयी; दिन और रात भी गए; सब द्वंद्व चले गए; जहां बिलकुल निपट सन्नाटा रह
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