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एस धम्मो सनंतनो
कि उसे तैरना आ गया और तुम उसे देखकर तैरना सीख ले सकते हो। लेकिन उसके कंधों का सहारा मत लेना, अन्यथा दूसरा किनारा कभी न आएगा। उसके कंधों पर निर्भर मत हो जाना, नहीं तो वही तुम्हारी बर्बादी का कारण होगा।
इसी तरह तो यह देश बरबाद हुआ। यहां मिथ्या गुरुओं ने लोगों को गुलाम बना लिया। इस मुल्क को गुलामी की आदत पड़ गयी। इस मुल्क को निर्भर रहने की आदत पड़ गयी। यह जो हजार साल इस देश में गुलामी आयी, इसके पीछे और कोई कारण नहीं है। इसके पीछे न तो मुसलमान हैं, न मुगल हैं, न तुर्क हैं, न हूण हैं, न अंग्रेज हैं। इसके पीछे तुम्हारे मिथ्या गुरुओं का जाल है।
मिथ्या गुरुओं ने तुम्हें सदियों से यह सिखाया है : निर्भर होना। उन्होंने इतना निर्भर होना सिखा दिया कि जब कोई राजनैतिक रूप से भी तुम्हारी छाती पर सवार . हो गया, तुम उसी पर निर्भर हो गए। तुम जी-हुजूर उसी को कहने लगे। तुम उसी के सामने सिर झुकाकर खड़े हो गए। तुम्हें आजादी का रस ही नहीं लगा; स्वाद ही नहीं लगा। __अगर कोई मुझसे पूछे, तो तुम्हारी गुलामी की कहानी के पीछे तुम्हारे गुरुओं का हाथ है। उन्होंने तुम्हें मुक्ति नहीं सिखायी, स्वतंत्रता नहीं सिखायी।
काश! बुद्ध जैसे गुरुओं की तुमने सुनी होती, तो इस देश में गुलामी का कोई कारण नहीं था। काश! तुमने व्यक्तित्व सीखा होता, निजता सीखी होती; काश! तुमने यह सीखा होता कि मुझे मुझी होना है; मुझे किसी दूसरे की प्रतिलिपि नहीं होना है और मुझे अपना दीया खुद बनना है, तो तुम बाहर के जगत में भी पैर जमाकर खड़े होते। यह अपमानजनक बात न घटती कि चालीस करोड़ का मुल्क मुट्ठीभर लोगों का गुलाम हो जाए! कोई भी आ जाए और यह मुल्क गुलाम हो जाए! ___ जरूर इस मुल्क की आत्मा में गुलामी की गहरी छाप पड़ गयी। किसने डाली यह छाप? किसने यह जहर तुम्हारे खून में घोला? किसने विषाक्त की तुम्हारी आत्मा? किसने तुम्हें अंधेरे में रहने के लिए विधियां सिखायीं? तुम्हारे तथाकथित गुरुओं ने। वे गुरु नहीं थे।
गुरु तो बुद्ध जैसे व्यक्ति ही होते हैं, जो कहते हैं, अप्प दीपो भव।
एकांत में ही बजेगा अंतिम संगीत। एकांत में ही उतरेगी समाधि। एकांत में ही होगा मिलन।
मुझसे इक नज्म का वादा है, मिलेगी मुझको डूबती नब्जों में जब दर्द को नींद आने लगे जर्द-सा चेहरा लिए चांद उफक पर पहुंचे दिन अभी पानी में हो, रात किनारे के करीब । न अंधेरा, न उजाला हो, न यह रात, न दिन जिस्म जब खत्म हो और रूह को जब सांस आए
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