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________________ अप्प दीपो भव! किस कदर सीधा सहल साफ है यह रस्ता देखो न किसी शाख का साया है, न दीवार की टेक न किसी आंख की आहट, न किसी चेहरे का शोर न कोई दाग जहां बैठ के सुस्ताए कोई दूर तक कोई नहीं, कोई नहीं, कोई नहीं चंद कदमों के निशां, हां, कभी मिलते हैं कहीं साथ चलते हैं जो कुछ दूर फकत चंद कदम और फिर टूट के गिरते हैं यह कहते हुए अपनी तनहाई लिए आप चलो, तन्हा, अकेले साथ आए जो यहां कोई नहीं, कोई नहीं किस कदर सीधा सहल साफ है यह रस्ता देखो अच्छा है कि तुम्हें परमात्मा तक अकेले ही पहुंचने की संभावना है। नहीं तो किसी पर निर्भर होना पड़ता। और निर्भरता से कभी कोई मुक्ति नहीं आती। निर्भरता तो गुलामी का ही एक अच्छा नाम है। निर्भरता तो दासता ही है। वह दासता की ही दास्तान है-नए ढंग से लिखी गयी; नए लफ्जों में, नए शब्दों में, नए रूप-रंग से; लेकिन बात वही है। । इसलिए कोई सदगुरु तुम्हें गुलाम नहीं बनाता। और जो गुलाम बना ले, वहां से भाग जाना। वहां क्षणभर मत रुकना। वहां रुकना खतरनाक है। जो तुम्हें कहे कि मेरे बिना तुम्हारा कुछ भी नहीं होगा; जो कहे कि मेरे बिना तुम कभी भी नहीं पहुंच सकोगे; जो कहे : मेरे पीछे ही चलते रहना, तो ही परमात्मा मिलेगा, नहीं तो चूक जाओगे—ऐसा जो कोई कहता हो, उससे बचना। उसे स्वयं भी अभी नहीं मिला है। क्योंकि यदि उसे स्वयं मिला होता, तो एक बात उसे साफ हो गयी होती कि परमात्मा जब मिलता है, एकांत में मिलता है; वहां कोई नहीं होता; कोई दूसरा नहीं होता। - उसे परमात्मा तो मिला ही नहीं है; उसने लोगों के शोषण करने का नया ढंग, नयी तरकीब ईजाद कर ली है। उसने एक जाल ईजाद कर लिया है, जिसमें दूसरों की गरदनें फंस जाएंगी। ऐसा आदमी धार्मिक नहीं है, राजनैतिक है। ऐसा आदमी गुरु नहीं है, नेता है। ऐसा आदमी भीड़-भाड़ को अपने पीछे खड़ा करके अहंकार का रस लेना चाहता है। इस आदमी से सावधान रहना। इस आदमी से दूर-दूर रहना। इस आदमी के पास मत आना। ___ जो तुमसे कहे कि मेरे बिना परमात्मा नहीं मिलेगा, वह महान से महान असत्य बोल रहा है। क्योंकि परमात्मा उतना ही तुम्हारा है, जितना उसका। हां, यह हो सकता है कि तुम जरा लड़खड़ाते हो। वह कम लड़खड़ाता है। या उसकी लड़खड़ाहट मिट गयी है और वह तुम्हें चलने का ढंग, शैली सिखा सकता है। हां, यह हो सकता है 251
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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