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एस धम्मो सनंतनो
गहरा डूबा, उसने देखा कि घर उस कोमल दीप्ति से भर गया है, जैसे बुद्ध की मौजूदगी में भर जाता है ___ वह पीछे लौटकर देखने ही वाला था कि मामला क्या है! और तभी पत्नी भी हंस पड़ी। पत्नी इसलिए हंस पड़ी कि यह भी हद्द हो गयी! मैं छिपाकर खड़ी हूं इस आशा में कि यह गौतम कहीं और चला जाए भिक्षा मांगने। मगर यह भी हद्द है कि यह भी डटकर खड़ा हुआ है। न कुछ बोलता, न कुछ चालता। यह भी यहीं खड़ा हुआ है! यह भी जाने वाला नहीं है, दिखता है!
उसे इस स्थिति में जोर से हंसी आ गयी। कि एक तो मैं जिद्द कर रही हूं कि फिर भोजन न बनाना पड़े; और यह भी जिद्द किए हुए खड़ा है कि आज बनवाकर रहेगा! इसलिए ब्राह्मणी हंस उठी।
बुद्ध की अंतःप्रज्ञा, उनकी सुगंध का नासापुटों में भर जाना, उनकी दीप्ति का घर में दिखायी पड़ना, फिर पत्नी का हंसना-तो स्वभावतः उसने पीछे लौटकर देखा। चौंककर उसने पीछे देखा। उसे तो अपनी आंखों पर क्षणभर को भरोसा ही नहीं आया।
किसको आएगा? जिसके पास भी आंख है, उसे भरोसा नहीं आएगा। हां, अंधों को तो दिखायी ही नहीं पड़ेंगे। ब्राह्मणी को दिखायी नहीं पड़े थे। ब्राह्मणी बिलकुल अंधी थी। उसके भीतर कोई दबा हुआ स्वर भी नहीं था अज्ञात का। सत्य की खोज की कोई आकांक्षा भी नहीं थी। वह गहन तंद्रा में थी। मूछित थी।
ब्राह्मण इतना मूच्छित नहीं था। आंख खुलने-खुलने के करीब थी। ब्राह्मणे का ब्रह्म-मुहूर्त आ गया था। सुबह होने के करीब थी। झपकी टूटती थी। या आधी टूट ही चुकी थी। रात जा चुकी थी; नींद भी हो चुकी थी; भोर के पक्षियों के स्वर सुनायी पड़ने लगे थे। ऐसी मध्य की दशा थी ब्राह्मण की।
ब्राह्मणी तो अपनी आधी रात में थी—मध्य-रात्रि में जब स्वप्न भी खो जाते हैं और सुषुप्ति महान होती है, प्रगाढ़ होती है। ब्राह्मणी की अमावस्या थी अभी। अंधेरी रात। लेकिन ब्राह्मण की सुबह करीब आ गयी थी।
ध्यान रखना, बाहर की सुबह तो सबके लिए एक ही समय में होती है। भीतर की सुबह सबके लिए अलग-अलग समय में होती है। बाहर की रात तो सभी के लिए एक ही समय में होती है। लेकिन भीतर की रात सबकी अलग-अलग होती है।
यह हो सकता है कि तुम्हारे पड़ोस में जो बैठा है, उसकी सुबह करीब है; और तुम अभी आधी रात में हो। यह हो सकता है कि तुम्हारी सुबह आने में अभी जन्मों-जन्मों की देर हो। और इसीलिए तो हम एक-दूसरे को समझ नहीं पाते, क्योंकि हमारी समझ के तल अलग-अलग होते हैं। कोई पहाड़ से बोल रहा है; कोई घाटी में भटक रहा है। कोई आंखें खोलकर देख लिया है; किसी की आंखें सदा से बंद हैं। तो एक-दूसरे को समझना बड़ा मुश्किल हो जाता है। क्योंकि सब सीढ़ी के
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