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________________ ब्राह्मणत्व के शिखर-बुद्ध जाते हैं। 'जिसने नद्धा, रस्सी, सांकल को काटकर खूटे को भी उखाड़ फेंका है, उस बुद्धपुरुष को मैं ब्राह्मण कहता हूं।' नद्धा अर्थात क्रोध, सांकल अर्थात मोह, रस्सी अर्थात लोभ और खंटा अर्थात काम। जिसने काम, क्रोध, मोह, लोभ-इन चार को उखाड़ फेंका है। 'जिसने नद्धा, रस्सी, सांकल को काटकर खूटे को भी उखाड़ फेंका है...।' सबकी जड़ खूटे में है—काम में। काम के कारण ही और सब चीजें पैदा होती हैं। इसे खयाल रखना। इसलिए काम मूल जड़ है। शेष शाखाएं हैं वृक्ष की; फूल-पत्ते हैं। असली चीज जड़ है—काम। क्यों? __ क्योंकि जब तुम्हारे काम में कोई बाधा डालता है, तो क्रोध पैदा होता है। जब तुम्हारा काम सफल होने लगता है, तो लोभ पैदा होता है। जब तुम्हारा काम सफल हो जाता है, तो मोह पैदा होता है। समझो उदाहरण के लिए, तुम एक स्त्री को पाना चाहते हो। और एक दूसरे सज्जन प्रतियोगिता करने लगे। तो क्रोध पैदा होगा। तुम प्रतियोगी को मारने को उतारू हो जाओगे। भयंकर ईर्ष्या जगेगी। आग की लपटें उठने लगेंगी। अगर तुम स्त्री को पा लो, तो तुम चाहोगे कि जो तुम्हारी हो गयी है, वह अब सदा के लिए तुम्हारी हो। कहीं कल किसी और की न हो जाए। तो लोभ पैदा हुआ। अब तुम्हारे भीतर स्त्री को परिग्रह बना लेने की इच्छा हो गयी कि वह मेरी हो जाए। सब तरफ द्वार-दरवाजे बंद कर दोगे। दीवाल के भीतर उसे बिठा दोगे। एक पीजड़े में बिठा दोगे और ताला लगा दोगे कि अब किसी और की कभी न हो जाए। लोभ पैदा हुआ। फिर जिससे सुख मिलेगा, उससे मोह पैदा होगा। फिर उसके बिना एक क्षण न रह सकोगे। जहां जाओगे, उसी की याद आएगी। चित्त उसी के आसपास मंडराएगा। और इन सबके खूटे में क्या है? काम है। तो बुद्ध कहते हैं : जिसने नद्धा-क्रोध उखाड़ फेंका; सांकल तोड़ दी-मोह उखाड़ फेंका; रस्सी तोड़ दी-लोभ उखाड़ फेंका। और इतना ही नहीं; जो खूटे को भी काटकर फेंक दिया है, उखाड़कर फेंक दिया है, उस बुद्धपुरुष को मैं ब्राह्मण कहता हूं। जिसके भीतर काम नहीं रहा, उसके भीतर ही राम का आविर्भाव होता है। यह काम की ऊर्जा ही जब और सारे विषयों से मुक्त हो जाती है, तो राम बन जाती है। राम कुछ और ऊर्जा नहीं है; वही ऊर्जा है। हीरा जब पड़ा है कूड़े-करकट में और मिट्टी में दबा है, तो काम। और जब हीरे को निखारा गया, साफ-सुथरा किया गया . और किसी जौहरी ने हीरे को पहलू दिए–तो राम। __काम और राम एक ही ऊर्जा के दो छोर हैं। काम की ही अंतिम ऊंचाई राम है। और राम का ही सबसे नीचे गिर जाना काम है। 239
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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