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एस धम्मो सनंतनो
___ 'जो बिना दृषित चित्त किए गाली, वध और बंधन को सह लेता है, क्षमा-बल ही जिसके बल का सेनापति है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं।'
छत्त्वा नन्दिं वरत्तञ्च सन्दामं सहनुक्कम। उक्खित्तपलिघं बुद्धं तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं ।। अक्कोसं बधबन्धञ्च अदुट्ठो यो तितिक्खति। खन्तिबलं बलानीकं तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं ।।
ऐसे व्यक्ति को मैं बुद्ध, ऐसे व्यक्ति को मैं ब्राह्मण कहता हूं, जिसने जीवन के सारे बंधन काट डाले हैं, जो परम स्वतंत्रता को उपलब्ध हो गया है। जिसकी ऊर्जा पर अब कोई सीमा नहीं है; जिसको पंख लग गए हैं। ___नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासंबुद्धस्स-जो भगवान हो गया है, जो अर्हत हो गया है, जो सम्यक संबोधि को प्राप्त हो गया है, वही ब्राह्मण है।
इसलिए बुद्ध ने कहा भिक्षुओ, ऐसी भ्रांति मत करो कि इन्होंने ब्राह्मण-धर्म छोड़ दिया। ये पहले ब्राह्मण थे ही नहीं। अब पहली दफा ब्राह्मण हुए हैं। अब पहली दफा ब्रह्म से परिचित हुए हैं। अब पहली दफा बुद्धत्व का स्वाद लगा है। मैंने इन्हें ब्राह्मण बनाया है।
काश! यह बात हिंदू समझ पाते। काश! यह बात यह देश समझ पाया होता! तो इस देश का सबसे प्यारा बेटा इस देश से निष्कासित नहीं होता। और इस देश को जो अपूर्व संपदा मिली थी, वह दूसरों के हाथ न पड़ती। ___ हजारों लोग चीन और जापान और थाईलैंड और बर्मा और कोरिया और लंका में बुद्ध के मार्ग पर चलकर बुद्धत्व को उपलब्ध हुए हैं। वे हजारों लोग यहां भी उपलब्ध हो सकते थे। लेकिन यहां एक भ्रांति पकड़ गयी कि बुद्ध ब्राह्मण-धर्म विरोधी हैं।
बुद्ध तथाकथित ब्राह्मणों के विरोधी थे। बुद्ध तथाकथित वेद और उपनिषदों के विरोधी थे। लेकिन असली वेद और असली उपनिषद और असली ब्राह्मण का कोई कैसे विरोधी हो सकता है!
आज इतना ही।
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