SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 250
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ब्राह्मणत्व के शिखर-बुद्ध उसके पति का छोटा भाई एकदम क्रुद्ध हो गया। उसने कहाः नष्ट हो दुष्टा। जहां नहीं, वहां ही उस मुंडे श्रमण की प्रशंसा करती है। तुम सोच रखना, लोग मुझे ही गाली देते हैं, ऐसा नहीं। वे बुद्ध को भी गाली दे रहे थे। वे कृष्ण को भी गाली दे रहे थे। वे महावीर को भी गाली दे रहे थे। उनका काम ही गाली देना रहा है। और फिर बोला : आज मैं तेरे उस श्रमण गौतम के साथ शास्त्रार्थ करूंगा और उसे हराऊंगा। ब्राह्मणी हंसी और बोली...। हंसी! हंसी इसलिए कि यह अच्छा ही हआ। चलो, इस बहाने ही तुम चले जाओ। कभी कोई दुश्मनी के बहाने भी बुद्ध के पास आ जाए, तो भी पास तो आया। चलो, इसी बहाने सही। शायद इसी बहाने कोई किरण पकड़ ले। कोई गंध पकड़ ले। शायद इसी बहाने बुद्ध से पहचान हो जाए। कौन जाने...। और कभी-कभी ऐसा होता है कि जब आदमी क्रोध से उबलता होता है, तो ऐसा होता है जैसे कि आग से लाल हो रहा लोहा, उस पर चोट पड़े तो जल्दी रूपांतरण हो जाता है। ठंडे लोहे को नहीं बदला जा सकता है। गरम लोहे को बदला जाता है। इसलिए लोहार पहले लोहे को गरम करता है। गरम लोहा बदला जा सकता है। अब यह भारद्वाज गरम लोहे की तरह चला बुद्ध की तरफ। उबल रहा है, सौ डिग्री पर उसका पारा है। भाप बन रही है उसके भीतर। ब्राह्मणी हंसी होगी और उसने कहाः नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासंबुद्धस्स। उसने कहाः धन्य हो भगवान! खूब तरकीब निकाली। खूब मुझे गिराया और मंत्र निकलवा दिया। और अब यह मेरा देवर चला तुम्हारे चक्कर में! अच्छा हुआ। नमस्कार हो भगवान को, नमस्कार हो अर्हत को, नमस्कार हो सम्यक संबुद्ध को। और उसने कहाः जाओ ब्राह्मण, जाओ। शास्त्रार्थ करो। यद्यपि उन भगवान के साथ शास्त्रार्थ करने में कौन समर्थ है? फिर भी तुम जाओ; कुछ भला होगा। चलो, इस बहाने ही सही। दुश्मन की तरह ही जाओ। दोस्त की तरह न जा सके, अभागे हो। चलो, दुश्मन की तरह जाओ। यह भी भाग्य का क्षण बन सकता है। ब्राह्मण क्रोध और अहंकार और विजय की आकांक्षा में जलता हुआ बुद्ध के पास गया। वह ऐसे था, जैसे साक्षात ज्वर हो; उसका सब जल रहा था। लेकिन भगवान को देखते ही कुछ हुआ; जैसे शीतल वर्षा हो गयी। कभी-कभी ऐसा हो जाता है। ठीक त्वरा में कोई बात प्रवेश कर जाती है। कुनकुने आदमी नहीं बदले जा सकते। ठंडे आदमी नहीं बदले जा सकते। लेकिन गरम आदमी बदले जा सकते हैं। जो बुद्ध के विरोध में इतना उत्तप्त हो सकता है-बिना बुद्ध को जाने, बिना बुद्ध को पहचाने; जिसने कभी उन आंखों में नहीं झांका; उस प्यारी देह को भी नहीं 235
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy