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________________ एस धम्मो सनंतनो देखा; उस प्यारी आत्मा के दर्शन भी नहीं किए; उसके वातावरण में भी नहीं गया; उस माहौल की कुछ खबर नहीं है कि वहां क्या हो रहा है। वह इतनी उत्तप्त दशा में आया होगा, तो जैसे जलता हुआ लोहा कोई पानी में फेंक दे, ऐसे बुद्ध की उस छाया में, उस शीतल छाया में चमत्कृत हो गया होगा। समझना। अगर सामान्यतया आया होता; सोचता कि चलो, एक दिन चलकर देखें: कौन है? क्या है? तो शायद परिणाम न होता। क्योंकि ठंडा-ठंडा आता। ठंडे लोहे को पानी में फेंक दो, कुछ भी न होगा। गरम लोहे को फेंको, बड़ी आवाज होगी। ठंडे लोहे को फेंको, पता भी न चलेगा। गरम लोहे को फेंको, तो गरम लोहा रूपांतरित होगा। ठंडा लोहा रूपांतरित नहीं होगा। क्योंकि ठंडा अब और क्या ठंडा होगा? यह गरम आया था। इसलिए बुद्ध की जो थोड़ी सी बूंदें इस पर पड़ी होंगी, तत्क्षण रूपांतरकारी हो गयीं। __चाहे प्रेम में गरम जाओ, चाहे घृणा में गरम जाओ; बुद्धों के पास गरम जाना। ठंडे मत जाना। उनकी उपस्थिति में उसका क्रोध अचानक बुझ गया, जैसे शीतल वर्षा हो गयी। उनकी आंखों को देख, उस व्यक्ति को जीतने की नहीं, उस व्यक्ति से हारने की आकांक्षा जाग उठी। प्रेम का मतलब यही होता है-हारने की आकांक्षा। जिससे तुम हारना चाहते हो, उससे तुम्हें प्रेम है। जिससे तुम जीतना चाहते हो, उससे तुम्हें कैसे प्रेम होगा? प्रेम की कला है : हारकर जीतना। हारने से शुरुआत है, जीतने में अंत है। प्रेमी हारता है; झुकता है; और जीत लेता है। इस शांत बैठे आदमी को देखकर, इस प्रसादपूर्ण आदमी को देखकर...। ऐसा आदमी तो इस ब्राह्मण ने कभी देखा नहीं था। ठगा रह गया होगा। किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया होगा एक क्षण को-अवाक, ठिठका हुआ। मन हुआः झुक जाऊं। मन हुआः इन चरणों में सिर रख दूं। ___ उसने कुछ प्रश्न पूछे। अब विवाद के लिए नहीं, मुमुक्षा से। और भगवान के उत्तरों को पा वह समाधान को उपलब्ध हुआ। जब कोई ममक्षा से पछता है, तो ही उत्तर हृदय तक पहंचता है। जब कोई विवाद के लिए पूछता है, तो उत्तर दिए जाते हैं, लेकिन पहुंचते नहीं। अगर उसने विवाद से पूछा होता, तो बुद्ध ने उत्तर दिए भी न होते। यही बुद्ध की प्रक्रिया थी। जब कोई विवाद से पूछता, तो बुद्ध कहतेः बैठो। कुछ देर रुको। कुछ देर मेरे पास रहो। सालभर बाद पूछना। सालभर बुद्ध अपनी हवा में उसे रखते। सालभर बुद्ध औरों के प्रश्नों के उत्तर देते। न मालूम कितने प्रश्नों के उत्तर देते। और इस आदमी को चुपचाप बिठा रखते। जिस दिन इसके भीतर विवाद की भाव-दशा चली जाती, और जिस दिन इसके भीतर जिज्ञासा उठती, मुमुक्षा उठती; इसलिए पूछता कि 236
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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