SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो बाधा डालेगा। क्योंकि उसे डर पैदा होता है कि एक झंझट हुई! अब कहीं कुछ से कुछ न हो जाए। यह मेरी पत्नी कहीं संन्यस्त न हो जाए। यह मेरा पति कहीं संन्यस्त न हो जाए। लोग अपने बेटों को नहीं लाते। मैं ग्वालियर में कई वर्षों पहले सिंधिया परिवार में मेहमान था। विजय राजे सिंधिया ने ही मुझे निमंत्रित किया था। लेकिन जब मैं पहुंच गया और मेरे संबंध में उसने बातें सुनीं; तो वह डर गयी। अब मुझे बुला लिया था, तो सभा का आयोजन भी किया। डरते-डरते मुझे सुना भी। उसके बेटे ने भी सुना। दूसरे दिन दोपहर वह मुझे मिलने आयी। उसने कहा कि क्षमा करें! आपसे छपाना नहीं चाहिए। मेरा बेटा भी आना चाहता था, लेकिन मैं उसे लायी नहीं। मैं तो प्रौढ़ हूं, लेकिन वह भावाविष्ट हो सकता है। वह आपकी बातों में आ सकता है। और आपकी बातें खतरनाक हैं। इसलिए मैं उसे लायी नहीं। मैं उसे आपसे नहीं मिलने दूंगी। और मैं आपसे कहे देती हूं, क्योंकि मैं आपसे छिपाना भी नहीं चाहती। अब यह मां बेटे को आड़ में लेकर खड़ी हो रही है। इसे पता नहीं, किस बात से बचा रही है। और अपने को प्रौढ़ समझती है। प्रौढ़ का मतलब यह कि मैं तो बहुत जड़ हूं; मुझ पर कुछ असर होने वाला नहीं है। आप कुछ भी कहें; मैं सुन लूंगी। मुझे कुछ खतरा नहीं है। लेकिन मेरा बेटा अभी जवान है; अभी ताजा है। और आपकी बातों में विद्रोह है। और कहीं उसको चिनगारी न लग जाए। फिर कहने लगी : मुझे क्षमा करें, क्योंकि मेरे पति चल बसे और अब बेटा ही मेरा सब सहारा है। जैसे कि मेरे संपर्क में आकर बेटा विकृत हो जाएगा! यह बड़ी हैरानी की बात है। पत्नी इतनी परेशान नहीं होती, अगर पति शराबघर चला जाए। लेकिन सत्संग में चला जाए, तो ज्यादा परेशान होती है। क्योंकि शराबघर कितनी ही अड़चनें ला दे; लेकिन कम से कम पत्नी की सुरक्षा तो कायम रहेगी! पति एक बार वेश्यालय भी चला जाए, तो पत्नी उतनी परेशान नहीं होती, जितनी साधु-संगत में बैठ जाए तो। क्योंकि चला गया, वापस लौट आएगा। लेकिन साधु-संगत में खतरा है। कहीं चला ही न जाए! कहीं वापस लौटने का सेतु ही न टूट जाए! __ जो हमारे मोह के जाल हैं, और उन मोह में जो लोग ग्रस्त हैं, उन सबको भय पैदा हो जाता है-जब तुम किसी बुद्धपुरुष के पास जाओगे। क्योंकि बुद्धपुरुषों की एक ही तो शिक्षा है कि मोह से मुक्त हो जाओ। तो जिनका मोह में निहित स्वार्थ है, वे सब तरह की अड़चन डालेंगे। और आदमी तरकीबें निकाल लेता है। __ एक मित्र मेरे पास आए। उन्होंने कहा कि मैं तो संन्यास लेना चाहता हूं, लेकिन मेरी पत्नी राजी नहीं है। और जब मैं घर से चलने लगा, तो उसने तीन दफा मुझसे कसम खिलवा ली कि संन्यास नहीं लेना। मैंने कसम भी खा ली है। तो संन्यास मैं 10
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy