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संन्यास की मंगल-वेला
हुआ है। लेकिन तुम पीठ किए रहे। ऐसा नहीं है कि तुम बुद्धों से नहीं मिले हो। मिले हो, मगर पीठ थी, इसलिए मिलना नहीं हो पाया।
ब्राह्मणी ने भगवान को देखा। लेकिन ब्राह्मणी के मन में तो कोई निश्चय उदय नहीं हुआ है। और उसे देखकर पता है, क्या चिंता पैदा हुई! आदमी कैसा क्षुद्र है! उसे एक चिंता पैदा हुई। उसे यह नहीं दिखायी पड़ा कि भगवान द्वार पर खड़े हैं। उलूं, पांव पखारूं, बिठाऊ! उसे फिक्र एक बात की हुई कि यदि मेरे पति ने इस श्रमण गौतम को देखा, तो फिर यह निश्चय ही भोजन उसे दे देगा। और मुझे फिर पकाने की झंझट करनी पड़ेगी।
आदमी कैसी क्षुद्र बातों में विराट को खोता है! ऐसी दशा तुम्हारी भी है। इस ब्राह्मणी पर नाराज मत होना। इस ब्राह्मणी को क्षमा करना। क्योंकि यह ब्राह्मणी तुम्हारी प्रतीक है।
क्षुद्र बातों में आदमी विराट को खो देता है। चिंता भी क्या उठी! तुम्हें हंसी आएगी। क्योंकि यह तुम्हारी स्थिति नहीं है। तुम सोचते होः अपनी स्थिति नहीं है यह। तुम्हें हंसी आएगी कि ब्राह्मणी भी कैसी मूढ़ है! लेकिन यही आम आदमी की दशा है। तुम भी ऐसी ही क्षुद्र-क्षुद्र बातों से चूकते हो। बातें इतनी क्षुद्र होती हैं, लेकिन उनके लिए तुम कारण खूब जुटा लेते हो!
ब्राह्मणी को एक फिक्र पैदा हुई कि और एक झंझट द्वार पर आकर खड़ी हो गयी! अब यह श्रमण गौतम भिक्षापात्र लिए खड़ा है।
यद्यपि बुद्ध भिक्षा मांगने आए नहीं हैं। बुद्ध भिक्षा देने आए हैं ! इस ब्राह्मण के मन में एक संकल्प जन्म रहा है। बुद्ध उसे जन्म देने आए हैं। बुद्ध ऐसे आए हैं, जैसे कि दाई। इसके भीतर कुछ पक रहा है। इसे सहारे की जरूरत है। जैसे गर्भ पूरा हो गया है और बच्चा पैदा होने को है-और दाई को हम बुलाते हैं।
सुकरात ने कहा है कि मैं दाई हूं। सभी बुद्धपुरुष दाई हैं। तुम्हारा ही जन्म होना है। तुम्हें कम से कम पीड़ा हो, ऐसे तुम्हारा जन्म हो जाए। कम से कम खून बहे, ऐसा तुम्हारा जन्म हो जाए। तुम तुम्हारे ही जन्म की प्रक्रिया में बाधा न बन जाओ, इस तरह तुम्हारा जन्म हो जाए। सरलता से, सुगमता से तुम्हारा पुनरुज्जीवन हो जाए।
तो बुद्ध तो इसलिए आए हैं। लेकिन यह स्त्री सोच रही है कि एक झंझट हुई। अब कहीं मुझे फिर भोजन न बनाना पड़े! इतना फासला है आदमी और बुद्धों में! __ ऐसा सोच, वह भगवान की ओर पीठ कर अपने पति को छिपाती हुई खड़ी हो गयी, जिससे कि ब्राह्मण उन्हें देख न सके।
ऐसा यहां रोज होता है। अगर पत्नी यहां आने में उत्सुक हो जाती है, तो पति अपनी पत्नी को छिपाकर सुरक्षा करने लगता है। अगर पति यहां आने में उत्सुक हो जाता है, तो पत्नी अपने पति को छिपाकर खड़ी हो जाती है; रोकने की कोशिश में लग जाती है। सौभाग्यशाली हैं वे, जो पति-पत्नी दोनों यहां आ गए हैं। नहीं तो एक