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एस धम्मो सनंतनो
कोई चाहे तो इसी तरह की क्लोरोफार्म की दशा योग की प्रक्रियाओं से पैदा कर सकता है। श्वास का ठीक-ठीक अभ्यास कर लेने पर, प्राणायाम का अभ्यास कर लेने पर अगर कोई श्वास को बाहर रोकने में समर्थ हो जाए, तो मूर्च्छित हो जाएगा।' और इस मूर्च्छा को एक विधि से चलाया जाता है। वह कहकर मूर्च्छित होगा कि मैं सात दिन तक मूर्च्छित रहूं । तो सात दिन के बाद मूर्च्छा अपने से टूट जाएगी ।
जैसे तुमने अगर कभी कोशिश की हो कि रात तय करके सोए कि सुबह पांच बजे नींद खुल जाए; अगर तुम ठीक से तय करके सोए, तो सुबह पांच बजे नींद खुल जाएगी।
हां, अगर ठीक से तय नहीं किया, तो ही अड़चन होगी। तय करते वक्त ही सोचते रहे कि अरे! कहां खुलती है ? ये सब बातें हैं। अगर ऐसे पांच बजे कहने से नींद खुलती होती, तो फिर अलार्म घड़ी की जरूरत क्या थी ! और मेरी नींद तो ऐसी है कि अलार्म से भी नहीं खुलती । पत्नी घसीटती है, खींचती है, तब भी नहीं खुलती । ऐसे सोचने से कहीं खुलने वाली है! लेकिन चलो, कहते हैं, तो देखें प्रयोग करके । सोच लिया कि पांच बजे नींद खुल जाएगी। नहीं खुलेगी। क्योंकि तुमने सोचा ही नहीं; भाव ही नहीं किया।
कभी शुद्ध मन से, साफ मन से भाव कर लो, तुम चकित हो जाओगे। ठीक पांच बजे न मिनट इधर, न मिनट उधर ।
मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि तुम्हारे भीतर भी एक घड़ी है – बायोलाजिकल क्लाक- जो भीतर चल रही है। उसी घड़ी के हिसाब से तो हर अट्ठाइसवें दिन स्त्री को मासिक-धर्म हो जाता है। नहीं तो कैसे पता चले कि अट्ठाइस दिन हो गए ! उसी घड़ी के अनुसार तो नौ महीने में बच्चा पैदा हो जाता है। नहीं तो कैसे पता चले कि नौ महीने पूरे हो गए ? उसी घड़ी के अनुसार तो तुम्हें ठीक वक्त रोज भूख लग आती है; नहीं तो पता कैसे चले कि अब बारह बज गए और भूख लगने का समय हो गया! वही घड़ी काम कर रही है। उस घड़ी का तुम उपयोग सीख जाओ, तो नींद समय पर खुल जाएगी; अलार्म की जरूरत नहीं होगी। और नींद समय पर आ जाएगी। कोई तंत्र-मंत्र करने की जरूरत नहीं होगी। भूख समय पर लग आएगी। सब समय पर होने लगेगा।
बाहर की घड़ी ने एक बड़ा नुकसान किया है कि भीतर की घड़ी विस्मृत हो गयी है। तुमने देखा : गांव में, जंगलों में लोगों को – घड़ी नहीं है लेकिन - समय का बड़ा बोध होता है। वे चार बजे रात उठकर बता सकते हैं कि कितनी देर और लगेगी सुबह होने में। आधी रात बता सकते हैं कि आधी रात बीत गयी। लेकिन जो आदमी घड़ी पर निर्भर हो गया है - हाथ में बंधी घड़ी पर फिर उसे कुछ पता नहीं चलता कि कितना बजा घड़ी धीरे-धीरे अवरुद्ध हो गयी है।
उसकी हाथ की घड़ी खो जाए,
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या क्या मामला है। भीतर की
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है,