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________________ ब्राह्मणत्व के शिखर-बुद्ध जीता है मस्तिष्क में; स्त्रियां धड़कती हैं हृदय में। इसलिए अक्सर ऐसा हो गया है कि पुरुष अहंकार में अकड़े रहे हैं, स्त्रियां उनके पहले झुक गयी हैं। तो यह स्रोतापत्ति-फल को प्राप्त जिस दिन से हुई थी, उसी दिन से इसका स्मरण एक था, इसका जाप एक था; उठते-बैठते-सोते, हर जगह एक ही बात कहती थी: नमो तस्सं भगवतो अरहतो सम्मासंबुद्धस्स। इस मंत्र को भी समझ लेना। नमस्कार हो उन भगवान को, उन सम्यक संबोधि प्राप्त को, उन अर्हत को। अर्हत का अर्थ होता है। जिसके भीतर के सारे शत्र मर गए। काम, क्रोध, लोभ, मोह-ये अरि कहे गए हैं। अरि यानी शत्रु। सब अरि हत हो गए; सब अरि मर गए। जिसके भीतर अब काम, क्रोध, लोभ, मोह, कुछ भी नहीं बचे; जो निर्विकार हुआ, वह है अर्हत। अर्हत कैसे निर्विकार होता है? सम्यक संबोधि से, ठीक-ठीक समाधि से। ठीक-ठीक समाधि क्या है? तुम कहोगेः समाधि भी क्या गैर-ठीक और ठीक होती है ? गैर-ठीक भी होती है; और ठीक भी होती है। गैर-ठीक समाधि का अर्थ होता है : मूर्छित समाधि; एक तरह की निद्रा, एक तरह की सुषुप्ति। आदमी मूर्छित हो जाता है समाधि में, तो गैर-ठीक समाधि। तुमने सुना होगाः कोई योगी बैठ जाता है जमीन पर और महीनेभर बैठा रहता है, कि सप्ताहभर बैठा रहता है। वह क्या करता है वहां? वह मूछित हो जाता है। वह सांस को अवरुद्ध करके अपनी चेतना खो देता है। जितनी देर चेतना खोयी रहती है, उतनी देर तक वह जमीन के नीचे रह सकता है। यह असम्यक समाधि है। यह जबर्दस्ती है। इस योगी में तुम कोई गुण न देखोगे। यह योगी तुम्हें रास्ते पर चलता मिल जाएगा, तो तुम इसे साधारण आदमी पाओगे। और हो सकता है कि यह चमत्कार जो इसने दिखाया, कुछ पैसे के लिए दिखा दिया हो। तुम इसमें बिलकुल सामान्य आदमी देखोगे। इसमें कुछ विशिष्टता नहीं होगी। इसने केवल विधि सीख ली है। इसने अपने को आत्म-सम्मोहित करना सीख लिया है। यह किसी तरह अपने को गहरी मूर्छा में उतारने की कला जान गया है। इसको समाधि नहीं कहना चाहिए। मगर इसको लोग समाधि कहते हैं। इसलिए बुद्ध को समाधि में भेद करना पड़ा। बुद्ध ने कहाः समाधि तो वही है कि होश बढ़े; घटे नहीं। समाधि तो वही है कि पूरी चैतन्य की अवस्था हो; अपूर्व चैतन्य का प्रकाश हो। और उस चैतन्य के प्रकाश में ही कोई सत्य को जाने। ऐसी मूर्छा में, गड्ढे में बैठकर कोई सत्य को थोड़े ही जान लेगा। यह तो एक तरह की मादकता है। जैसे कोई क्लोरोफार्म में पड़ जाता है। क्लोरोफार्म में पड़ जाता है, तो फिर उसका आपरेशन करने में कठिनाई नहीं आती। क्योंकि उसे कुछ पता नहीं चलता। 231
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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