SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 245
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो से आक्रोशन करता हुआ, गाली देता हुआ, असभ्य शब्दों को बोलता हुआ वेणुवन गया। और वह भी भगवान के पास जा ऐसे बुझ गया, जैसे जलता अंगारा जल में गिरकर बुझ जाता है। ऐसा ही उसके दो अन्य भाइयों के साथ भी हुआ। भिक्षु भगवान का चमत्कार देख चकित थे। वे आपस में कहने लगे: आवुसो! बुद्ध-गुण में बड़ा चमत्कार है। ऐसे दुष्ट, अहंकारी और क्रोधी व्यक्ति भी शांतचित्त हो संन्यस्त हो गए हैं और ब्राह्मण-धर्म को छोड़ दिए हैं। भगवान ने यह सुना तो कहाः भिक्षुओ! भूल न करो। उन्होंने ब्राह्मण धर्म नहीं छोड़ा है। वस्तुतः पहले वे ब्राह्मण नहीं थे और अब ब्राह्मण हुए हैं। तब बुद्ध ने ये सूत्र कहे हैं: छत्त्वा नन्दिं वरत्तञ्च सन्दामं सहनुक्कमं। उक्खित्तपलिघं बुद्धं तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं ।। अक्कोसं बधबन्धञ्च अदुट्ठो यो तितिक्खति। खन्तिबलं बलानीकं तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं ।। 'जिसने नद्धा, रस्सी, सांकल को काटकर खूटे को भी उखाड़ फेंका है, उस बुद्धपुरुष को मैं ब्राह्मण कहता हूं।' 'जो बिना दूषित चित्त किए गाली, वध और बंधन को सह लेता है, क्षमा-बल ही जिसके बल का सेनापति है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं।' समझो इस परिस्थिति को जिसमें इन सूत्रों का जन्म हुआ। राजगृह में धनंजाति नाम की ब्राह्मणी स्रोतापत्ति-फल प्राप्त करने के समय से ही, किसी बहाने हो, भगवान की वंदना किया करती थी। स्रोतापत्ति-फल का अर्थ होता है : जो बुद्ध की धारा में प्रविष्ट हो गया; स्रोत में आपन्न हो गया; जो बुद्ध की नदी में उतर गया। और जिसने कहाः नदी, अब मुझे ले चल। जो बुद्ध की धारा में सम्मिलित हो गया और बुद्ध के साथ बहने लगा, उसको कहते हैं-स्रोतापत्ति-फल। __और अक्सर ऐसा हो गया है : जहां पुरुष दंभ में अकड़े खड़े रह जाते हैं, वहां स्त्रियां छलांग लगा जाती हैं। सारा परिवार बुद्ध-विरोधी था, और यह ब्राह्मणी स्रोतापत्ति-फल को उत्पन्न हो गयी। यह गयी और बुद्ध के चरणों में झुक गयी। क्योंकि स्त्रियां विचार से नहीं जीतीं, भाव से जीती हैं। और भाव से संबंध जुड़ना आसान होता है, विचार की बजाय। विचार दंभी है, अहंकारी है। भाव सदा समर्पित होने को तत्पर है। ___ स्त्री का हृदय बुद्धों से जल्दी जुड़ जाता है, बजाय पुरुषों के मस्तिष्क के। पुरुष 230
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy