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ब्राह्मणत्व के शिखर-बुद्ध है। नमो तस्स भगवतो-नमस्कार हो उन भगवान को; नमस्कार हो उन अर्हत को; नमस्कार हो उन सम्यकरूप से संबोधि प्राप्त को। यह बुद्ध के प्रति नमस्कार है। नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासंबुद्धस्स।
कोई भी बहाना मिले तो वह चूकती नहीं थी ब्राह्मणी धनंजाति नाम की। छींक आ जाए, खांसी आ जाए, फिसलकर गिर पड़े, तो वह तत्क्षण कहतीः नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासंबुद्धस्स।
एक दिन उसके घर भोज था। काम की भागा-भागी में उसका पैर फिसल गया। ब्राह्मणी थी; भोज में सारे ब्राह्मण इकट्ठे थे। सारा परिवार इकट्ठा था। पति था, पति के सब भाई थे; रिश्तेदार थे। सम्हलते ही उसने तत्क्षण भगवान की वंदना की : नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासंबुद्धस्स-नमस्कार हो उन भगवान को, नमस्कार हो उन अर्हत को, नमस्कार हो उन सम्मासंबुद्धस्स को।
इसे सुनकर उसके पति के भाई भारद्वाज ने उसे बहुत डांटाः नष्ट हो दुष्टा! जहां नहीं, वहां ही उस मुंडे श्रमण की प्रशंसा करती है। और फिर बोला: आज मैं तेरे उस श्रमण गौतम के साथ शास्त्रार्थ करूंगा और सदा के लिए उसे समाप्त करूंगा; उसे हराकर लौटूंगा।
ब्राह्मणी हंसी और बोलीः नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासंबुद्धस्स। नमस्कार हो उन भगवान को, नमस्कार हो उन अर्हत को, नमस्कार हो उन सम्यक संबोधि प्राप्त को। जाओ ब्राह्मण, शास्त्रार्थ करो। यद्यपि उन भगवान के साथ शास्त्रार्थ करने में कौन समर्थ है! फिर भी तुम जाओ। इससे कुछ लाभ ही होगा।
ब्राह्मण क्रोध और अहंकार और विजय की महत्वाकांक्षा में जलता हुआ बुद्ध के पास पहुंचा। वह ऐसे था, जैसे साक्षात ज्वर आया हो। उसका सब जल रहा था। लपटें ही लपटें उसमें उठ रही थीं। लेकिन भगवान को देखते ही शीतल वर्षा हो गयी। उनकी उपस्थिति में क्रोध बुझ गया। उनकी आंखों को देख, उस व्यक्ति को जीतने की नहीं, उस व्यक्ति से हारने की आकांक्षा पैदा हो गयी। उसका मन रूपांतरित हुआ। उसने कुछ प्रश्न पूछे—विवाद के लिए नहीं, मुमुक्षा से। और भगवान के उत्तरों को पा वह समाधान को उपलब्ध हआ। समाधि लग गयी। फिर घर नहीं लौटा। बुद्ध का ही हो गया। बुद्ध में ही खो गया। वह उसी दिन प्रव्रजित हुआ और उसी दिन अर्हत्व को उपलब्ध हुआ।
ऐसी घटना बहुत कम घटी है कि उसी दिन संन्यस्त हुआ और उसी दिन समाधिस्थ हो गया। उसी दिन संन्यस्त हुआ और उसी दिन बुद्धत्व को उपलब्ध हुआ। ऐसी घटना बहुत मुश्किल से घटती है। जन्मों-जन्मों में भी बुद्धत्व फल जाए, तो भी जल्दी फल गया। यह तो चमत्कार हुआ।
फिर उसके भाई, ब्राह्मणी के पति को भी बुद्ध पर भयंकर क्रोध आया, जब उसे खबर लगी कि उसका छोटा भाई संन्यस्त हो गया। वह भी भगवान को नाना प्रकार
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