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ब्राह्मणत्व के शिखर-बुद्ध
इसलिए बुद्ध ने दो शब्दों का उपयोग किया, 'जिसमें सत्य और धर्म है...।' धर्म तो सबमें है। उतना ही तुममें है, जितना बुद्ध में है। लेकिन तुममें सत्य नहीं है । तुम्हें सत्य का पता नहीं है। तुमने अभी धर्म का साक्षात्कार नहीं किया है। धर्म को जागकर जान लेने का नाम सत्य का साक्षात्कार है। ऐसे साक्षात्कार से शुचिता पैदा होती है, स्वच्छता पैदा होती है। वही शुचिता ब्राह्मणत्व है।
'हे दुर्बुद्धि, जटाओं से तेरा क्या बनेगा ? मृगचर्म पहनने से तेरा क्या होगा ? तेरा अंतर तो विकारों से भरा है, बाहर क्या धोता है ?"
लोग बाहर ही धोने में लगे हैं! ऐसा नहीं कि बाहर धोना कुछ बुरा है। धोना तो सदा अच्छा है। कुछ न धोने से बाहर धोना भी अच्छा है। लेकिन बाहर धोने में ही समाप्त हो जाना अच्छा नहीं है। भीतर भी बहुत कुछ धोने को है । जब तुम गंगा में स्नान करते हो, तो बाहर ही साफ होते हो; भीतर नहीं हो सकते। जब तक ध्यान की गंगा में स्नान न करो, तब तक भीतर साफ न हो सकोगे। ऊपर-ऊपर साफ कर लगे। बुराई कुछ नहीं है इसमें; लेकिन भलाई भी कुछ खास नहीं है।
भीतर कैसे कोई साफ होता है ? भीतर किस जल से कोई साफ होता है ? ध्यान जल से । भीतर का विकार क्या है ? विचार भीतर का विकार है । भीतर मल का मूल कारण विचार है। जितने ज्यादा विचार, उतना ही भीतर चित्त मलग्रस्त होता है। जब विचार क्षीण होते, विचार शांत हो जाते, कोई विचार नहीं रह जाता, भीतर सन्नाटा छा जाता है, उसी सन्नाटे का नाम है – भीतर धोना । और जो भीतर अपने को धो लेता है, वही ब्राह्मण है।
'जो सारे संयोजनों को काटकर भयरहित हो जाता है, और संग और आसक्ति से विरत हो जाता है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं।'
'जो सारे संयोजनों को काटकर... '
हमने जीवन को जो बना रखा है, वह सब संयोजन है। किसी को पत्नी मान लिया है - यह एक संयोजन है। कोई तुम्हारी पत्नी है नहीं; न कोई तुम्हारा पति है। कैसे कोई पति - पत्नी होगा ? तुम कहते हो : नहीं, आप भी क्या बात कहते हैं ! पुरोहित के सामने, अग्नि की साक्षी में सात फेरे लिए हैं। सात नहीं, तुम सत्तर लो; फेरे लेने से कोई पति - पत्नी होता है ?
एक सज्जन अपनी पत्नी से छूटना चाहते थे । वे मेरे पास आए थे । वे कहने लगे : कैसे छूटं ! सात फेरे लिए हैं। मैंने कहा : उलटे सात फेरे ले लो। और क्या करोगे ! छूटना ही हो तो छूट जाओ ।
फेरे से कोई कैसे बंधेगा ? यह सब संयोजन है । यह तरकीब है। ये फेरे, यह आग, ये मंत्र, यह पंडित, यह पुरोहित, यह भीड़-भाड़, यह बारात, यह घोड़े पर बैठना, ये बैंड-बाजे – ये सब तरकीबें हैं, ये संयोजन हैं तुम्हारे मन में यह बात गहरी बिठाने के लिए कि अब तुम पति हो गए; यह पत्नी हो गयी ।
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