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एस धम्मो सनंतनो
दुष्ट हैं। तू वहां जाएगा, तो गालियां खानी पड़ेगी। लांछन सहने पड़ेंगे। हजार तरह की निंदा। उनका व्यवहार बड़ा असभ्य है। ___ पूर्ण ने कहाः फिर भी उनके लिए किसी की जरूरत है। उनके लिए आपकी जरूरत है। उनको भी जरूरत है कि बुद्ध की किरण वहां पहुंचे। मैं वहां जाऊंगा।
बुद्ध ने कहाः तो फिर तू कुछ सवालों के जवाब दे दे। एक, अगर वे गालियां देंगे, तो तुझे क्या होगा?
तो पूर्ण ने कहाः क्यों आप पूछते हैं! आप जानते हैं, मुझे क्या होगा। मुझे वही होगा, जो आपको होगा। क्योंकि अब मैं आपसे भिन्न नहीं हूं। फिर भी आप पूछते हैं, तो मैं कहता हूं। मुझे ऐसा होगा कि ये लोग कितने भले हैं। सिर्फ गालियां ही देते हैं, मारते नहीं। मार भी सकते थे।
बुद्ध ने कहाः दूसरा सवाल। और अगर वे मारें, तो तुझे क्या होगा?
पूर्ण ने कहाः मुझे यही होगा कि लोग बड़े भले हैं कि मारते हैं, मार ही नहीं डालते! मार डाल भी सकते थे।
बुद्ध ने कहाः तीसरा और आखिरी सवाल कि अगर वे मार -ही डालें, तो आखिरी क्षण में सांस टूटते वक्त तुझे क्या होगा?
पूर्ण ने कहाः यही होगा कि लोग बड़े भले हैं; उस जीवन से छुटकारा दिलवा दिया, जिसमें कोई भूल-चूक हो सकती थी। __ 'ब्राह्मण के लिए यह कम श्रेयस्कर नहीं है कि वह प्रिय पदार्थों को मन से हटा लेता है। जहां-जहां मन हिंसा से निवृत्त होता है, वहां-वहां दुख शांत हो जाता है।' ___'न जटा से, न गोत्र से, न जन्म से कोई ब्राह्मण होता है। जिसमें सत्य और धर्म है, वही शुचि और ब्राह्मण है।'
. धर्म कहने से ही काम चलना चाहिए था, लेकिन बुद्ध ने दो शब्द उपयोग किए-सत्य और धर्म।
यम्हि सच्चञ्च धम्मो च सो सूची सो च ब्राह्मणो।
क्यों? धर्म सबके पास है। धर्म यानी तुम्हारा अंतरतम स्वभाव; तुम्हारा अंतरतम; तुम जो अपनी मूल प्रकृति में हो, वही है धर्म। धर्म सबके भीतर है। जिसे पता हो जाता है, उसके भीतर सत्य भी होता है।
धर्म तो सबके भीतर है। धर्म को जिसने जागकर देख लिया, वह सत्य को उपलब्ध हो गया।
ब्राह्मण सभी हैं, लेकिन बीज में हैं। जब बीज फूटकर वृक्ष बन जाता है, तो सत्य। स्वभाव को जान लिया, पहचान लिया भर आंख। आमने-सामने खड़े होकर देख लिया; साक्षात कर लिया स्वभाव का, तो सत्य।
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