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________________ ब्राह्मणत्व के शिखर - बुद्ध लेकिन भिक्षुओं को सारिपुत्र का व्यवहार नहीं जंचा। उन्होंने भगवान से कहा : आयुष्मान सारिपुत्र ने अच्छा नहीं किया, जो कि मारने वाले ब्राह्मण के घर भी भोजन किया। वह अब किसे बिना मारे छोड़ेगा ! वह तो भिक्षुओं को मारते ही विचरण करेगा। यह सामान्य आदमी का तर्क है। इस तर्क के पार जाना जरूरी है। शास्ता ने भिक्षुओं से कहा : भिक्षुओ ! ब्राह्मण को मारने वाला ब्राह्मण नहीं हो सकता। पहली बात। गृहस्थ- ब्राह्मण द्वारा श्रमण-ब्राह्मण मारा गया होगा । झूठे ब्राह्मण द्वारा सच्चा ब्राह्मण मारा गया होगा। लेकिन जो मारता है अकारण, बिना कुछ वजह के, वह ब्राह्मण नहीं हो सकता। और सारिपुत्र ने वही किया, जो ब्राह्मण के योग्य है । फिर तुम्हें पता भी नहीं है कि सारिपुत्र के ध्यानपूर्ण व्यवहार ने एक अंधे आदमी को आंखें प्रदान कर दी हैं। तब उन्होंने ये सूत्र कहे हैं। 'ब्राह्मण के लिए यह कम श्रेयस्कर नहीं है कि वह प्रिय पदार्थों को मन से हटा लेता है। जहां-जहां मन हिंसा से निवृत्त होता है, वहां-वहां दुख शांत होता है।' समझना। तुम्हारे मन में हिंसा क्यों उठती है? कब उठती है? तभी उठती है, जब तुमसे तुम्हारा कोई प्रिय पदार्थ छीना जाता है। तभी उठती है, जब कोई तुम्हारे और तुम्हारे प्रिय पदार्थ के बीच में आ जाता है। समझो, अगर सारिपुत्र को अपनी देह से बहुत मोह होता, तो यह लात कारगर हो गयी होती। ब्राह्मण जीत गया होता; मारने वाला ब्राह्मण जीत गया होता। अगर देह से बहुत मोह होता, तो फिर असंभव था कि बिना लौटे देखे और सारिपुत्र आगे बढ़ जाए। फिर असंभव था कि ध्यान का दीया जला रह जाए। फिर असंभव था कि सारिपुत्र क्षुब्ध न होता । हजार तरंगें उठ आतीं। वे नहीं उठीं। क्यों? क्योंकि देह से कोई मोह नहीं है; देह से कोई तादात्म्य नहीं है । तुम तभी नाराज होते हो, जब तुमसे कोई तुम्हारी प्रिय वस्तु छीनता है या प्रय वस्तु नष्ट करता है। बुद्ध के एक शिष्य थे पूर्णकाश्यप । वे ज्ञान को उपलब्ध हो गए; बुद्धत्व पा लिया। तो बुद्ध ने कहा : पूर्ण ! अब तू बुद्धत्व को उपलब्ध हो गया, अब तू जा और जो तूने पाया है, उसे बांट । अब तू दूर-दूर जा, दूर-दूर देश । और जहां-जहां खबर पहुंचा सके, पहुंचा। पूर्ण राजी हुआ। उसने कहा : आपकी आज्ञा है, तो मैं जाता हूं। बुद्ध ने पूछा: किस तरफ जाएगा ? कहां जाएगा ? तो उसने कहा : एक प्रदेश है बिहार का - सूखा प्रदेश, वहां कोई भिक्षु कभी नहीं गया। मुझे आप वहीं जाने की आज्ञा दें। क्या वहां के लोग आपसे वंचित ही रह जाएंगे ! बुद्ध ने कहा : सुन पूर्ण ! वहां कोई इसीलिए नहीं गया कि वहां के लोग बड़े 225
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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