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एस धम्मो सनंतनो
है। जो विपक्ष में ही नहीं है, वह पक्ष में कभी न हो सकेगा।
उस यहूदी फकीर ने ठीक कहा कि पत्नी पर मेरा कोई वश नहीं चल सकेगा। यह धर्मगुरु तो आज नहीं कल मेरे पक्ष में होगा। और यही हुआ।
जैसे ही शिष्य चला गया, वह धर्मगुरु थोड़ा शांत हआ। फिर उसे भी लगा कि उसने दुर्व्यवहार किया। आखिर फकीर ने अपनी किताब भेजी थी इतने सम्मान से, तो यह मेरी तरफ से अच्छा नहीं हुआ। उठा; किताब को झाड़ा-पोंछा। अब पश्चात्ताप के कारण किताब को पढ़ा-कि अब ठीक है; जो हो गयी भूल, हो गयी। लेकिन देखू भी तो कि इसमें क्या लिखा है!
पढ़ा-तो बदला। पढ़ा-तो देखा कि ये तो परम सत्य हैं इस किताब में। वही सत्य हैं, जो सदा से कहे गए हैं। एस धम्मो सनंतनो। वही सनातन धर्म, सदा से कहा गया धर्म इसमें है। अभी किताब फेंकी थी; घड़ीभर बाद झुककर उस किताब को नमस्कार भी किया।
उस यहूदी फकीर ने ठीक ही कहा कि धर्मगुरु पर तो अपना वश चलेगा कभी न कभी। लेकिन उसकी पत्नी पर अपना कोई वश नहीं है। उसकी पत्नी को हम न बदल सकेंगे।
इसलिए अक्सर ऐसा हो जाता है। मनोविज्ञान की बड़ी जटिल राहें हैं।
इस घटना ने अंधे को आंखें दे दी। वह सारिपुत्र के चरणों में गिर पड़ा और प्रार्थना की कि मेरे घर चलें। भोजन करें। मेरा स्वागत-सत्कार स्वीकार करें। उसकी
आंखें पश्चात्ताप के आंसुओं से भरी थीं। और वे आंसू उसके सारे कल्मष को बहाकर उसकी आत्मा को निर्मल कर रहे थे।
आंखें आंसुओं से भर जाएं, तो और इससे बड़ी निर्मल करने वाली कोई और विधि नहीं है। पश्चात्ताप उमड़ आए, तो सब पाप धुल जाते हैं। पश्चात्ताप सघन हो जाए, तो तुम्हारे भीतर जो भी कूड़ा-करकट है, पश्चात्ताप की सघन अग्नि में जल जाता है। इसलिए जीसस ने तो पश्चात्ताप को, रिपेंटेंस को धर्म की सबसे बड़ी कीमिया कहा है। बाइबिल में जगह-जगह वे दोहराते हैं, रिपेंट! पश्चात्ताप करो। डूबो पश्चात्ताप में। जितने डूब जाओगे पश्चात्ताप में, उतने ही ताजे होकर निकलोगे। पश्चात्ताप में स्नान हो जाता है। पश्चात्ताप में पाप विसर्जित हो जाते हैं। गंगा में नहाने से शायद न हों, लेकिन पश्चात्ताप में नहाने से निश्चित हो जाते हैं।
उसकी आंखें पश्चात्ताप के आंसुओं से भरी थीं। और वे आंसू उसके सारे कल्मष को बहाकर उसकी आत्मा को निर्मल कर रहे थे।
इस तरह सारिपुत्र के निमित्त उस पर पहली बार बुद्ध की किरण पड़ी।
जो बुद्ध के शिष्य से मिल गया, वह बुद्ध से भी मिल गया। बुद्ध अगर सूर्य हैं, तो उनके शिष्य सूर्य की किरणें हैं। सारिपुत्र के निमित्त यह बात घट गयी। यह ब्राह्मण बुद्ध का हो गया। सारिपुत्र जब ऐसा है, तो बुद्ध कैसे होंगे!
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