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________________ एस धम्मो सनंतनो ध्यान रखना, इस जगत में तथ्य होते ही नहीं । तथ्य झूठ बात है। इस जगत में सब व्याख्याएं हैं; तथ्य नहीं होते । एक बड़ा इतिहासकार एडमंड बर्क विश्व का इतिहास लिख रहा था। उसने कोई तीस साल उस पर मेहनत की थी । और वह चाहता था कि दुनिया का ऐसा इतिहास लिखे, जैसा पहले कभी नहीं लिखा गया । तीस साल लंबा समय था । आधा जीवन उसने गंवा दिया था। एक दिन उसके घर के पीछे एक हत्या हो गयी। वह भागा हुआ पहुंचा। भीड़ खड़ी थी। लाश पड़ी थी। हत्यारा पकड़ लिया गया था रंगे हाथों । उसने लोगों से पूछा कि क्या हुआ ? लेकिन जितने लोग थे, उतनी बातें ! जितने मुंह, उतनी बातें ! कोई हत्यारे के पक्ष में था। कोई जिसकी हत्या की गयी उसके पक्ष में था । कोई इसका कसूर बता रहा था; कोई उसका कसूर बता रहा था। एडमंड बर्क तो हैरान हो गया। उसके घर के पीछे हत्या हुई है; अभी हत्यारा मौजूद है; अभी लाश पड़ी है; अभी खून बह रहा है सड़क पर । अभी सब ताजा है और नया है। अभी खून सूखा भी नहीं है। लोग मौजूद हैं, जो चश्मदीद गवाह हैं। लेकिन कोई दो चश्मदीद गवाह की बात एक सी नहीं है । वह लौटकर आया और उसने तीस साल में जो इतिहास लिखा था, उसको आग लगा दी। उसने कहा कि मैं इतिहास लिखने बैठा हूं दुनिया का ! बुद्ध के समय में क्या हुआ; और सिकंदर के समय में क्या हुआ; और कृष्ण के समय में क्या हुआ ? यह मैं क्या कर रहा हूं! मेरे घर के पीछे एक हत्या हो जाए; मैं भागकर पहुंचूं। रंगे हाथ हत्यारा पकड़ा गया हो। चश्मदीद गवाह मौजूद हों। और निर्णय करना मुश्किल है कि क्या हुआ! तो मैं तीन हजार और पांच हजार साल पहले क्या हुआ—यह कैसे तय कर पाऊंगा! सब अफवाहें हैं और सब व्याख्याएं हैं। व्याख्या व्याख्या की बात है। तुम कैसे व्याख्या करते हो, इस पर सब निर्भर करता है। मेरे एक संन्यासी ने - उमानाथ ने – नेपाल से मुझे पत्र लिखा है कि दक्षिण भारत में लोग राम को जलाकर क्या पाएंगे? जब मैं उनका पत्र पढ़ रहा था, तब मैंने सोचा कि जब ये उमानाथ आएंगे, तो मैं उनसे पूछूंगा : तुमने उत्तर में रावण को जलाकर क्या पाया? उस पर संदेह नहीं है उन्हें । उत्तर के हैं। उस पर संदेह नहीं है कि रावण को जलाने में कोई हर्जा है! रावण को तो जलाना ही चाहिए हर साल ! लेकिन ये राम के पक्ष में जिन्होंने किताबें लिखी हैं, उनकी व्याख्या है। रावण के पक्ष में किताबें लिखी जा सकती हैं, तब व्याख्या बिलकुल बदल जाएगी। घटना वही है, लेकिन व्याख्या बदल जाएगी। क्या सच है - मैं नहीं कह रहा हूं। मैं तुमसे यह कह रहा हूं कि तथ्यों में सच होता ही नहीं; सब व्याख्या होती है। तय ही नहीं हो पाता दुनिया में । इतने युद्ध हो 216
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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