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________________ एस धम्मो सनंतनो है तो फिर मेरा क्या! मिथ्या-दृष्टि दूसरे की निंदा सुन सकता है। क्यों? क्योंकि दूसरे की निंदा से उसके अहंकार को भरण-पोषण मिलता है। तो वह कहता है : अच्छा! तो यह भी चरित्रहीन है! इससे तो हम ही भले हैं! तुम ध्यान रखना, निंदा का एक मनोविज्ञान है। क्यों लोग निंदा पसंद करते हैं? तुम अगर किसी से कहो कि अनाम का आदमी संत हो गया है; कोई मानेगा नहीं। पच्चीस दलीलें लोग लाएंगे कि नहीं; संत नहीं है। सब धोखा-धड़ी है। सब पाखंड है। और तुम किसी के संबंध में कहो कि फलां आदमी चोर हो गया है; तो कोई विवाद न करेगा। वह कहेगा ः हमें पहले से ही पता है। वह चोर है ही। क्या हमें बता रहे हो! वह महाचोर है। तुम्हें अब पता चला! तुम्हारी आंखें अंधी थीं। तुमने कभी देखाः निंदा जब तुम किसी की करो, तो कोई प्रमाण नहीं मांगता। और प्रशंसा जब करो, तो हजार प्रमाण मांगे जाते हैं। और, और भी एक कठिनाई है कि प्रशंसा जिन चीजों की होती है, उनके लिए प्रमाण नहीं होते। और निंदा जिन चीजों की होती है, उनके लिए प्रमाण होते हैं। क्योंकि निंदा तो क्षुद्र जगत की बात है, उसके लिए प्रमाण हो सकते हैं। समझो किसी आदमी की तुम निंदा कर रहे हो कि उसने चोरी की। तो चार आदमी गवाह की तरह खड़े किए जा सकते हैं कि इन्होंने उसे चोरी करते देखा। लेकिन तुम कहते हो कि कोई आदमी जाग गया, प्रबुद्ध हो गया; इसके लिए कहां गवाह खोजोगे! कहां से गवाह मौजूद करोगे? कौन कहेगा कि हां, मैंने इसको बुद्ध होते देखा! यह बात तो देखने की नहीं है। यह तो बुद्ध ही कोई हो, तो देख सके; जो स्वयं बुद्ध हो, वह देख सके। दूसरा तो कोई इसका गवाह नहीं हो सकता। मजे की बात देखना। जो प्रशंसा-योग्य तत्व हैं, उनके लिए प्रमाण नहीं होते। और उनके लिए लोग प्रमाण पूछते हैं। और जो निंदा है, उसके लिए हजार प्रमाण होते हैं, लेकिन कोई प्रमाण पूछता ही नहीं। प्रमाण के बिना ही स्वीकार कर लेते हैं लोग। लोग निंदा स्वीकार करना चाहते हैं। लोग तैयार ही हैं कि निंदा करो। तुम्हारे अखबार निंदा से भरे होते हैं। तुम अखबार पढ़ते ही इसीलिए हो कि आज किस-किस की बखिया उधेड़ी गयी। अखबार में जिस दिन निंदा नहीं होती, उस दिन तुम उसे उदासी से सरकाकर एक तरफ रख देते हो—कि कुछ खास बात ही नहीं है। जब अखबार में हत्या की खबर होती है, चोरी की, किसी की स्त्री के भगाने की, तलाक की, आत्महत्या की, तब तुम एकदम चश्मा ठीक करके एकदम अखबार पर झुक जाते हो कि एक शब्द चूक न जाए! इसलिए बेचारा अखबार छापने वाला आदमी निंदा की तलाश में घूमता रहता है। पत्रकारों की दृष्टि ही मिथ्या हो जाती है, क्योंकि उनका धंधा ही खराब है। उनके धंधे का मतलब ही यह है कि जनता जो चाहती है, वह लाओ खोजबीन कर। अच्छे 214
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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