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एस धम्मो सनंतनो
यम्हि सच्चञ्च धम्मो च सो सुची सो च ब्राह्मणो।।
'न जटा से, न गोत्र से, न जन्म से ब्राह्मण होता है। जिसमें सत्य और धर्म है, वही शुचि है और वही ब्राह्मण है।'
किं ते जटाहि दुम्मेध! किं ते अजिनसाटिया। अब्भन्तरं ते गहनं वाहिरं परिमज्जसि ।।
'हे दुर्बुद्धि, जटाओं से तेरा क्या बनेगा? मृगचर्म पहनने से तेरा क्या होगा? तेरा अंतर तो विकारों से भरा है, बाहर क्या धोता है?'
सब्बसनोजनं छत्त्वा यो वे न परितस्सति। संगातिगं विसञ्चुत्तं तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं।।
'जो सारे संयोजनों को काटकर भयरहित हो जाता है, उस संग और आसक्ति से विरत को मैं ब्राह्मण कहता हूं।' ___ श्रावस्ती नगरवासी-सीधे-सादे लोग–एकत्र होकर सारिपुत्र के गुणों की प्रशंसा कर रहे थे। ___ सारिपुत्र बुद्ध के प्रमुख शिष्यों में एक। जिन्होंने बुद्ध के जीते जी बुद्धत्व प्राप्त किया-उनमें से एक। सारिपुत्र स्वयं भी कभी बहुत बड़ा पंडित था। जब पहली बार बुद्ध के पास आया था, तो बुद्ध से विवाद करने आया था। पांच सौ अपने शिष्यों को साथ लाया था। लेकिन बुद्ध के पास आकर विवाद का मौका नहीं बना। विवाद के पहले हार हो गयी। बुद्ध को देखते ही हार हो गयी। ___ बड़ा संवेदनशील रहा होगा। पांडित्य तो था, लेकिन पांडित्य पर बहुत पकड़ न रही होगी। पांडित्य तो था, लेकिन पांडित्य से हटकर देखने की क्षमता रही होगी। इसलिए बुद्ध को देखते ही रूपांतरित हो गया। शिष्यों से अपने कहा था, भूल जाओ विवाद की बात। यह आदमी विवाद करने योग्य नहीं है। यह आदमी लड़ने योग्य नहीं है। यह आदमी ऐसा है, जिसके चरणों में हम बैठे। मैं तो बुद्ध का शिष्यत्व स्वीकार करता हूं। तुम मेरे शिष्य हो; अगर तुम मुझे समझे हो, तो मेरे साथ झुक जाओ। खुद दीक्षित हुआ; अपने पांच सौ शिष्यों को भी दीक्षित किया।
बुद्ध के पास हजारों शिष्य थे, उनमें सारिपुत्र सबसे बड़ा बौद्धिक व्यक्ति था लेकिन बुद्धि में सीमित नहीं। और जल्दी ही उसमें फूल खिलने शुरू हो गए। जल्दी ही उसमें सुवास आनी शुरू हो गयी। जो झुकने को इतना तत्पर हो! आया था विवाद करने और निर्विवाद झुक गया! जिसके पास ऐसी सरल दृष्टि हो; ऐसा
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