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________________ समग्र संस्कृति का सृजन माथा पकड़ के आज तक रोते रहे ये लोग इनको गलत निशां के सिवा कुछ नहीं पता। खंजर नहीं उठा सको, तेवर ही बदल लो तुमको तो मेहरबां के सिवा कुछ नहीं पता। वो क्या करेंगे रोशनी घर में कभी, जिन्हें बझती हई शमां के सिवा कछ नहीं पता। जन्नत भी कहीं होती है, ये कहती है किताब लेकिन हमें यहां के सिवा कुछ नहीं पता। किताब की मानना भी मत। तुम्हें पता चल सकता है। जन्नत का पता लगाने की जरूरत भी नहीं है। क्योंकि जन्नत तुम्हारे भीतर है, कहीं और नहीं। जन्नत का कोई भूगोल नहीं है; जन्नत का सिर्फ अध्यात्म है। जन्नत यहां है—इन वृक्षों में, इस आकाश में, इन चांद-तारों में, इन लोगों में-जन्नत कहीं और नहीं है। किताबें तुम्हें किसी जन्नत की बात करती हैं, जो कहीं दूर आकाशों में, सात आसमानों के पार है। वह जन्नत झूठी है। जिन्होंने वे किताबें लिखी हैं, उनको भी पता नहीं है। ___मैं तुम्हें जन्नत यहां दे रहा हूं। इस जन्नत को पाने के लिए किताबों में जाने की जरूरत नहीं है; अपने में जाने की जरूरत है। तुम ही हो वह किताब, जिसको तुम वेद में खोजते हो, कुरान में, बाइबिल में, धम्मपद में। तुम ही हो वह किताब, जिसे पढ़ा जाना है। कौन पढ़ेगा तुम्हारे अलावा? तुम्हारे भीतर सारे वेद पड़े हैं, सारे कुरान, सारे उपनिषद छिपे हैं। जब किसी ऋषि से उपनिषद पैदा हुआ, तो उसका अर्थ यही है कि हर आदमी में पड़ा है। जब भी कोई जागेगा, उसी से उपनिषद पैदा हो जाएगा। जब किसी से वेद की ऋचाएं निकलीं और कुरान की अपूर्व आयतें आयीं-वे इतनी ही खबर देती हैं कि हर आदमी के अचेतन गर्त में यह सब पड़ा है। अगर मोहम्मद में उठ सका, तो तुम में भी उठ सकेगा। ____ मैं तुम्हें तुम्हारी याद दिलाता हूं। किसी किताब में जाने की जरूरत नहीं है। तुम ही हो वह किताब। और जन्नत कहीं दूर नहीं है, आगे नहीं है, जन्नत यहां है और अभी है। जन्नत जीवन को जीने का ढंग है। नर्क भी जीवन को जीने का ढंग है। एक गलत, एक सही। बस, उतना ही भेद है। नर्क का अर्थ होता है कि तुम इस ढंग से जी रहे हो कि दुख पैदा होता है। तुम इस ढंग से जी रहे हो कि चिंता पैदा होती है। तुम इस ढंग से जी रहे हो कि बेचैनी रहती है। तुम इस ढंग से जी रहे हो कि खिंचे-खिंचे रहते हो। जन्नत का अर्थ क्या है ? जन्नत या स्वर्ग का अर्थ है : तुम्हें राज हाथ लग गया। तुम इस ढंग से जीने लगे कि सुख की छाया बनी रहती है; शांति बनी रहती है भीतर। 205
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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