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एस धम्मो सनंतनो तो कहना : आस्तिक हूं। चोटी न भी हो, तो भी टोपी लगाकर जाना और कहना कि चोटी है। और पतलून भी पहने हो, तो ऊपर से धोती पहन लेना। और इसके पहले कि ऐसे महात्मा तुमसे कहें कि खड़े होकर पेशाब करते हो कि बैठकर; तुम ही बता देना कि हम बैठकर ही पेशाब करते हैं।
वहां डरना। मेरे पास डरने की कोई भी जरूरत नहीं है। तुम्हारा जैसा प्रश्न हो। मैं अगर कुछ हं, तो चिकित्सक हूं। तुम मुझसे अपनी बीमारी न कहोगे, तो कैसे होगा! और ध्यान रखनाः मैं पशु-चिकित्सक नहीं हूं। आदमियों का चिकित्सक हूं।
एक सज्जन मेरे पास आए। उन्होंने कहा कि फलां डाक्टर बड़ा गजब का डाक्टर है। उससे कहो ही मत; वह नाड़ी पर हाथ रखकर सब बीमारियां बता देता है। तो मैंने कहा कि वह आदमियों का डाक्टर है कि पशुओं का? वे बोले नहीं; आदमियों का डाक्टर है। मैंने कहाः आदमी तो बोल सकता है। पशओं का सवाल है कि नाड़ियों पर हाथ रखो। अब पशु तो बोल नहीं सकता, तो अब नाड़ी पकड़कर देखो कि क्या बीमारी है। आदमी बोल सकता है। इसमें गुणवत्ता क्या है ? इसमें कोई गुणवत्ता नहीं है। ___ मैं चाहता हूं कि तुम अपनी बीमारी मुझसे कहो। तुम्हारे कहने में ही आधी बीमारी हल होती है। मैं तुम्हारे बिना कहे भी जान सकता हूं। लेकिन मेरे जानने से उतना लाभ नहीं होगा, जितना तुम कहोगे तो होगा।
एक तो कहने के लिए तुमने जो साहस जुटाया, वही बड़ी बात हो गयी। कहने के लिए तुमने जो भय छोड़ा, वही बड़ी बात हो गयी। कहने के लिए तुमने जो सोचा-विचारा, विश्लेषण किया, परखा अपने भीतर-क्या है मेरा रोग-उसी में तुम्हारा ध्यान बढ़ा; तुम्हारा होश बढ़ा। __ठीक से प्रश्न पूछ लेना, आधा उत्तर पा जाना है। ठीक से अपना प्रश्न पकड़ लेना, आधा उत्तर पा जाना है। आधा काम तुम करो; आधा काम मैं करूं। क्योंकि तुम अगर बिलकुल कुछ न करो, तो तुम्हें लाभ नहीं होगा। पूरा काम अगर मुझे करना पड़े, तो तुम्हें लाभ नहीं होगा।
मैं तुम्हें इशारा दे सकता हूं; काम तुम्हें करना है।
आखिरी प्रश्नः
कहते हैं लोग, आती है बहार भी कभी लेकिन हमें खिजां के सिवा कछ नहीं पता। मुड़ते हवा के साथ रहे जो सदा, उन्हें क्यों और कब, कहां के सिवा कुछ नहीं पता।
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