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समग्र संस्कृति का सृजन
वह बेचारा ईश्वर का प्रमाण लेने आया है! अब उसकी चोटी भी नहीं है । गया नर्क में। गया काम से। और पतलून पहन रखी है !
और फिर बात यहीं खतम नहीं हो गयी। वे लोग और हंसने लगे। वह तो थोड़ा चिंता में पड़ गया होगा कि यह मैं कैसा प्रश्न पूछ बैठा ! यहां चार आदमी के सामने फजीहत हो गयी । .
जो उन्होंने और आगे बात की, वह तो बहुत गजब की है— ब्रह्म-ज्ञान की ! उन्होंने कहा कि तुम पतलून ही पहनकर पेशाब भी करते हो? तो तुम अशुद्ध हो । खड़े होकर पेशाब करते हो ? क्योंकि पतलून पहने हो, तो बैठकर कैसे करोगे ?
यह ब्रह्म-ज्ञान चल रहा है ! और वे सारे लोग हंसने लगे। उस आदमी की तरफ किसी का खयाल नहीं है । और उसने एक ऐसी बात पूछी थी, जो सभी के भीतर है। और यह मैंने शंकराचार्य की पत्रिका में ही पढ़ा। तो मतलब जिसने छापा है, वे शंकराचार्य की पत्रिका वाले लोग इसको बड़े गौरव से छापे हैं कि देखो, शंकराचार्य ने कैसा नास्तिक को ठीक किया !
किसी को ठीक कर रहे हो कि किसी को सहारा देना है ! और जो आदमी ऐसी बातें कह रहा है, यह शंकराचार्य, इससे ऊंचाई पर नहीं हो सकता; इससे ज्यादा ऊंचाई पर नहीं हो सकता ।
इस आदमी के अपमान में पूरी मनुष्य जाति का अपमान कर दिया गया। और जो आदमी यह कर रहा है, वह गहन प्रकार से दंभ का रोगी है।
पर ।
इन्हीं शंकराचार्य के साथ एक दफा पटना में मेरा मिलना हो गया - एक ही मंच | मैत्रेय जी तुम्हें पूरी कहानी बता सकेंगे। संयोजकों ने मुझे भी बुला लिया; उनको भी बुला लिया। उन्होंने मुझे देखते ही से संयोजकों को कहा कि अगर ये सज्जन यहां बोलेंगे, तो मैं यहां नहीं बोल सकता !
अब संयोजक बड़ी मुश्किल में पड़ गए कि अब करना क्या ? अड़चन खड़ी हो गयी। मुझे निमंत्रित किया है; दूर से मुझे बुलाया है । और ये कहते हैं कि अगर मैं बोला, तो वे नहीं बोलेंगे !
मैंने संयोजकों को कहा कि उनको कहो कि पहले मैं बोल देता हूं। फिर पीछे वे बोलें। और दिल भरकर जो आलोचना करनी हो, वह कर लें। यह बात उन्हें जंची। फिर वे मुश्किल में पड़ गए। वे तो इतने क्रोध में आ गए कि आलोचना करना तो मुश्किल ही हो गया । आलोचना के लिए भी तो थोड़ी शांति तो चाहिए। वे तो एकदम ज्वरग्रस्त हो गए। वे तो सन्निपात में हो गए। तो कुछ का कुछ बकने लगे। बूढ़े आदमी, इतना जोश-खरोश ; पैर खिसक गया; मंच से गिर गए।
इस तरह के महात्माओं के पास जाओ, तो तुम्हारा कहना ठीक है; डरना । पहले तो जाना ही मत। चले जाओ, तो दिल की मत कहना। वहां झूठे प्रश्न पूछना। वहां अगर श्रद्धा न हो, तो कहना: बड़ी श्रद्धा है भीतर - तो ठीक होगा । नास्तिक हो,
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