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एस धम्मो सनंतनो
और कहीं अगर किसी उपन्यास को पढ़ते वक्त—यह आदमी कह रहा है-मुझे अगर ऐसी कोई बात मिल जाती है, जिसमें मेरी झलक आती है, तो मैं डरता हूं कि कहीं कोई पढ़कर यह समझ न ले कि यह इस आदमी के बाबत है।
दास्तां अपनी ढूंढता हूं जहां-जहां सरगुजश्त मेरी है ऐसी सतरों को मैं मिटाता हूं रौशनाई से काट देता हूं मुझको लगता है कि लोग उनको अगर पढ़ेंगे
तो राह चलते में टोककर मुझसे जाने क्या पूछने लगेंगे! लोगों का भय खतरनाक है। इसी से पक्षाघात पैदा हो जाता है; इसी से तुम्हें लकवा मार जाता है।
यहां तुम फिक्र छोड़ो। क्योंकि यहां मेरे पास प्यारे लोग इकट्टे हैं। ऐसे लोग इकट्ठे हैं, जो समझेंगे। ऐसे लोग इकट्ठे हैं, जिनको तुम पर निंदा का खयाल न आएगा। जो तुम्हें धन्यवाद देंगे। जो कहेंगेः हमारी बात तुमने कह दी। हम छिपाए बैठे थे। हमारा घाव तुमने खोल दिया। तुम्हारे घाव के खोलने के बहाने हमें भी औषधि का पता चला।
यहां मेरे पास पुराने ढंग के महात्मा, साधु-संत नहीं हैं। यहां एक नए ढंग का मनुष्य जन्म ले रहा है; एक नया संन्यास पैदा हो रहा है। यहां तुम भय छोड़ सकते हो। ___ हां, तुमसे मैं कहूंगा कि किसी जैन मुनि के सामने जाकर मत कहना। किसी शंकराचार्य के सामने जाकर मत कहना। वहां तुम्हारी भयंकर निंदा होगी। वहां ऐसी छोटी-छोटी बातों पर निंदा हो जाती है, जिसका हिसाब नहीं है। ____ मैंने सुना : पुरी के शंकराचार्य दिल्ली में ठहरे हुए थे। और एक आदमी ने खड़े होकर उनसे जिज्ञासा की कि मैं खोजी हूं। मगर ईश्वर पर मुझे भरोसा नहीं आता; विश्वास नहीं होता। मुझे भरोसा दिलवाइए। कुछ ऐसा प्रमाण दीजिए कि ईश्वर है। __ और पता है, शंकराचार्य ने क्या कहा! शंकराचार्य ने उस आदमी की तरफ क्रोध से देखा और पूछा कि तुमने पतलून क्यों पहन रखी है? __वह बेचारा ईश्वर की जिज्ञासा कर रहा है! वे पूछते हैं : तुमने पतलून क्यों पहन रखी है? और वहां बैठे होंगे चुटैयाधारी और भी लोग। क्योंकि पुरी के शंकराचार्य के पास और कौन जाएगा! मूढ़ों की जमात होगी वहां। वे सब हंसने लगे। और यह बेचारा एकदम दीन-हीन हो गया। पतलून पहने हुए खड़ा हुआ है! होगा दिल्ली के किसी दफ्तर में क्लर्क।
तुमने पतलून क्यों पहन रखी है? भारतीय संस्कृति का क्या हुआ? तुम्हारी चोटी कहां है?
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