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________________ समग्र संस्कृति का सृजन नहीं। यहां सब ने पाप किए हैं। यहां कौन है जो पापी नहीं है! पाप से ऊपर उठना है । पाप के पार जाना है। लेकिन कौन है जो पापी नहीं है ! पुरानी कहावत है कि हर पुण्यात्मा कभी पापी रहा है। और हर पापी कभी पुण्यात्मा हो जाएगा। संत का अतीत है; पापी का भविष्य है । मगर भेद क्या है ? इसलिए जो पहुंचे हैं, उन्होंने कभी तुम्हारी किसी एक बात पर भी तुम्हारी निंदा नहीं की। क्योंकि वे जानते हैं कि यही भूलें उनसे भी हुईं। इन्हीं गड्ढों में वे भी गिरे हैं। और जब तक तुम्हें ऐसा कोई करुणावान न मिल जाए, तब तक जानना गुरु नहीं मिला । अगर तुम किसी के सामने जाकर कहो कि मैं क्या करूं? मेरे मन में चोरी का सवाल उठता है। और वह आदमी एकदम डंडा उठा ले - कि तुम महापापी हो; नर्क में सड़ोगे। तो तुम समझ लेना कि इस आदमी में अभी अनुभव ही नहीं है । इसे करुणा ही नहीं है। इसे याद ही नहीं है । या शायद इसे याद है और दबा रहा है-कि इसने भी यही सोचा है । कि इसने भी इसी तरह के विचारों को कभी अपने मन में संजोया है। और इसका डंडा उठाना यह बता रहा है कि ये विचार इसके भीतर अभी भी जिंदा हैं; मिटे नहीं हैं। यह डंडा तुम्हारे लिए नहीं उठा रहा है। यह डंडा अपने लिए उठा रहा है। यह असल में यह कह रहा है कि मत छेड़ो मुझे । मत उकसाओ मुझे। किसी तरह राख जम गयी है अंगारे पर, मत फूंक मारो। अन्यथा मेरी राख उड़ गयी, तो यह अंगारा मेरे भीतर भी है। तुम जाओ यहां से । नर्क जाओ। तुम कहीं भी जाओ; मगर यहां मत आओ। यह कहां की बातें ले आए ! 1 जब कोई संत तुम्हारी निंदा करे, तो समझ लेना कि अभी संत का जन्म नहीं हुआ है। संत वही है, जो तुम्हें स्वीकार करे । तुम्हारे गहनतम अपराधों में भी स्वीकार करे। तुम्हारा गहनतम अपराध भी संत के मन में तुम्हारे प्रति निंदा न लाए, तो ही संत है। जो समझे। जो कहे कि ठीक है। यही तो मैंने भी किया है। यही तो मुझसे भी हुआ है। घबड़ाओ मत। जो तुमसे हो रहा है, वह मुझसे हुआ है। और जो मुझसे हो रहा है, वह तुमसे भी हो सकता है। क्योंकि हम दोनों अलग नहीं हैं । जो मेरा अतीत है, वह तुम्हारा भविष्य है। हम संयुक्त हैं। हम अलग नहीं हैं। हम एक-दूसरे से ब्यौरा ले-दे सकते हैं। जिन गुनाहों का बोझ सीने में ले के फिरता हूं उनको कहने का मुझमें यारा नहीं है। तो शक्ति जुटाओ । शक्ति बिना जुटाए कुछ भी न होगा। मैं दूसरों की लिखी हुई किताबों में दास्तां अपनी ढूंढता हूं जहां-जहां सरगुजश्त मेरी है 201
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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