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एस धम्मो सनंतनो
की मात्रा थोड़ी ज्यादा; और किसी में राग की मात्रा थोड़ी कम। ये मात्राओं के भेद हैं। मगर मौलिक भेद कहां होंगे? मौलिक भेद होते ही नहीं। आदमी आदमी सब एक जैसे हैं। और जब तुम किसी दूसरे का प्रश्न सुनते हो, तो खयाल करना, किसी न किसी अर्थों में यह तुम्हारा प्रश्न भी है।
तो जो समझदार हैं, वे समझेंगे और तम्हें धन्यवाद देंगे। और जो नासमझ हैं...। नासमझों का क्या? हंसने दो। एक समझदार भी समझ ले, तो काफी है। और हजार नासमझ हंसते रहें, तो किसी मूल्य के नहीं हैं।
और तुम अगर ऐसे डरे तो बड़ी मुश्किल में पड़ोगे। तुम्हारी हालत तो ऐसी हो जाएगी, कल मैं एक गीत पढ़ता था
जो मुझ पे बीती है उसकी तफसील मैं किसी से न कह सकूँगा जो दुख उठाए हैं जिन गुनाहों का बोझ सीने में ले के फिरता हं उनको कहने का मुझमें यारा नहीं है मैं दूसरों की लिखी हुई किताबों में दास्तां अपनी ढूंढता हूं जहां-जहां सरगुजश्त मेरी है ऐसी सतरों को मैं मिटाता हूं रौशनाई से काट देता हूं। मुझको लगता है कि लोग उनको अगर पढ़ेंगे ।
तो राह चलते में टोककर मुझसे जाने क्या पूछने लगेंगे! मतलब समझे? यह आदमी कह रहा है कि जो मुझ पे बीती है, उसकी तफसील मैं किसी से न कह सकूँगा; उसका विवरण, ब्यौरा मैं किसी को न बता सकूँगा। मुझ पर ऐसा बीता। लेकिन तुम समझो, जो तुम पर बीता है, वह हजारों पर बीता है। जो तुम पर बीता है, वह हजारों पर बीत रहा है। तुम भिन्न नहीं हो। तुम कोई द्वीप नहीं हो अलग-थलग। तुम संयुक्त हो।
जो मुझ पे बीती है उसकी तफसील मैं किसी से न कह सकूँगा जो दुख उठाए हैं जिन गुनाहों का बोझ सीने में ले के फिरता हूं ।
उनको कहने का मुझमें यारा नहीं है। . मुझमें शक्ति नहीं है। दुखों की और अपराधों की, जो मैंने किए हैं...।
सब, और भी, ऐसे ही कमजोर हैं। तुमने ही अपराध किए हैं, ऐसा नहीं। सब ने अपराध किए हैं। यहां कौन है जो अपराधी नहीं है! तुमने ही पाप किए हैं, ऐसा
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